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________________ ४७६ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा संघदासगणी द्वारा चित्रित अवन्ती-जनपद की राजधानी उज्जयिनी थी। यह जनपद धन-धान्य से समृद्ध था और यहाँ के नागरिक बड़े सुखी थे। विद्या और ज्ञान-विज्ञान का यहाँ बड़ा आदर था। उज्जयिनी के तत्कालीन राजा जितशत्रु का कोष और कोष्ठागार बहुत सम्पन्न था। साधन और वाहनों की प्रचुरता थी। भृत्य और मन्त्री राजा के प्रति अतिशय अनुरक्त थे। राजा का साथी अमोघरथ धनुर्वेद में पारंगत था। बाद में, अमोघरथ का पुत्र अगडदत्त अपने पिता के स्थान पर सारथी नियुक्त हुआ था। उज्जयिनी के तत्कालीन सार्थवाह सागरचन्द की ख्याति दिग्दिगन्त में व्याप्त थी ('दसदिसिपयासो इब्मो सागरचंदो नाम; धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ४९) । उज्जयिनी के व्यापारी कौशाम्बी जाकर व्यापार करते थे। तत्कालीन उज्जयिनी से कौशाम्बी की ओर जानेवाला मार्ग बड़ा दुर्गम था। बीहड़ पहाड़ी जंगलों में चारों ओर जंगली जानवरों का सामना व्यापारियों को करना पड़ता था। कथाकार ने उज्जयिनी और कौशाम्बी की बार-बार चर्चा की है। काशी-जनपद का वर्णन करते हुए कथाकार ने वाराणसी की भूरिशः चर्चा की है। वाराणसी मुख्यतः धार्मिक संस्कृति की पुण्यभूमि रही है। इसलिए, विभिन्न साधु-सन्तों, भिक्षु-भिक्षुणियों और परिव्राजक परिव्राजिकाओं का जमघट वहाँ लगा ही रहता था। वहाँ समुद्रयात्री व्यापारियों एवं स्थलयात्री सार्थवाहों की भी प्रचुरता थी। वाराणसी की परिव्राजिका सुलसा व्याकरण और सांख्यशास्त्र की पण्डिता थी। एक बार वह याज्ञवल्क्य नामक त्रिदण्डी परिव्राजक से शास्त्रार्थ में पराजित हो गई। शर्त के अनुसार, उसे आजीवन याज्ञवल्क्य मुनि की खड़ाऊँ ढोने के लिए विवश होना पड़ा । इसी क्रम में याज्ञवल्क्य से दैहिक सम्बन्ध हो जाने के कारण वह गर्भवती हो गई और उसने पिप्पलाद नामक बालक को जन्म दिया । पिप्पलाद ने पशुमेध तथा नरमेध-यज्ञपरक अथर्ववेद की रचना की । अपनी अवैध उत्पत्ति का पता चलने पर उसने अपने माता-पिता को खण्ड-खण्ड करके गंगा में फेंक दिया। ___ कथाकार ने वाराणसी की भौगोलिक स्थिति अर्द्धभरत के दक्षिण में मानी है। दक्षिण में कोशल की सीमा काशी तक पहुँचती थी, जहाँ कदाचित् काशी के लोगों की मानरक्षा के लिए प्रसेनजित् का छोटा भाई परम्परागत रूप से काशिराज बना हुआ था, जैसे मगध द्वारा अंग पर अधिकार हो जाने के बाद ही चम्पा में 'अंगराज' नामक राजाओं की परम्परा बनी हुई थी। कथाकार द्वारा वर्णित कुरु-जनपद की राजधानी हस्तिनापुर थी। हस्तिनापुर को ही गजपुर भी कहा गया है। कथाकार ने हस्तिनापुर में राज्य करनेवाले अनेक राजाओं का उल्लेख किया है। शान्तिस्वामी, कुन्थुस्वामी और अरस्वामी हस्तिनापुर के ही तीर्थकर-रल थे। ब्राह्मणों के वामनावतार के प्रतिरूप विष्णुकुमार की जन्मभूमि भी हस्तिनापुर ही थी। भरत के छोटे भाई बाहुबली हस्तिनापुर और तक्षशिला के स्वामी थे। चक्रवर्ती राजा सनत्कुमार हस्तिनापुर में ही उत्पन्न हुआ था। सनत्कुमार व्यायाम का अभ्यासी था। परशुराम ने राजा कार्तवीर्य का वध हस्तिनापुर में ही किया था। जमदग्निपुत्र परशुराम ने सात बार पृथ्वी को निःक्षत्रिय किया था, तो कार्तवीर्यपुत्र सुभौम ने इक्कीस बार पृथ्वी को निर्ब्राह्मण करके उसका भयंकर बदला चुकाया था। सगरपुत्र भागीरथि (भगीरथ) गंगा की धारा को कुरु-जनपद के बीच से हस्तिनापुर लाया था। बौद्ध साहित्य के आधार पर डॉ. मोतीचन्द्र ने लिखा है कि बुद्ध के समय महाजनपथ कुरु-प्रदेश
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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