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________________ ४५६ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा संघदासगणी ने तो सृष्टि के आदिपुरुष के रूप में भी दो सार्थवाह-पुत्रों ('दुवे सत्यवाहपुत्ता) की ही परिकल्पना की है (नीलयशालम्भ: पृ. १५७) । _ 'वसुदेवहिण्डी' के सार्थवाह बुद्धि के धनी, सत्यनिष्ठ, अतुल साहसी, व्यावहारिक सूझ-बूझ से सम्पन्न, अतिशय उदार, महान् दानी, धर्म और संस्कृति में रुचि रखनेवाले, प्रत्येक नई स्थिति-परिस्थिति के स्वागत में कुशल, देश-विदेश की जानकारी के महाकोष, यवन, बर्बर, खस, हूण आदि विदेशियों के साथ आँख मिलानेवाले और उनकी भाषा और रीति-नीति के पारखी थे। ये सार्थवाह महासागर के तट पर स्थित मध्य-एशिया और मलय-एशिया के देशों-ताम्रलिप्ति से यवद्वीप तक तथा पश्चिम में यवन-बर्बर देशों तक के विशाल जल और स्थल पर छाये हुए थे। इन्हीं सार्थवाहों के नेतृत्व में एक ही जलयान या प्रवहण पर यात्रा करनेवाले सब व्यापारी, चाहे उनमें पूँजी का साझा या कौटिल्य के शब्दों में 'सम्भूयसमुत्थान' हो या न हो, सांयात्रिक कहे जाते थे। वस्तुत: वैधानिक दृष्टि से उनके पारस्परिक उत्तरदायित्व और साझेदारी के समझौतों की सीमाएँ और स्वरूप क्या थे, यह विषय अभी तक कुहेलिकाच्छन्न है । इस ओर संघदासगणी ने भी किसी निर्णायक बिन्दु की ओर संकेत नहीं किया है। किन्तु, तत्कालीन राजाओं के साम्राज्य की मूलभित्ति—अर्थ-व्यवस्था की आधारशिला ये सार्थवाह ही थे, इसमें कोई सन्देह नहीं। (घ) भौगोलिक एवं राजनीतिक आसंग तथा ऐतिहासिक साक्ष्य 'वसुदेवहिण्डी' भौगोलिक और राजनीतिक इतिहास का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। इस महाग्रन्थ के रचयिता संघदासगणी ने कथा के व्याज से भौगोलिक और राजनीतिक इतिहास के अनेक तथ्यों को उपन्यस्त किया है। ज्ञातव्य है कि भारतीय साहित्य में प्रवहमाण ब्राह्मण, जैन और बौद्धों की संस्कृत, प्राकृत और पालि की धाराएँ एक ही संस्कृति के महाक्षेत्र को सींचती हैं। उनमें परस्पर अविच्छिन्न सम्बन्ध है। ऐतिहासिक सामग्री और शब्दरल सबमें बिखरे पड़े हैं। 'वसुदेवहिण्डी' के अध्ययन से यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि इस कथा-महार्णव से न केवल भारतीय साहित्य या संस्कृति के विविध अंगों का, अपितु, चीन से यूनान तक की भौगोलिक एवं राजनीतिक सामग्री का भी, राष्ट्रीय इतिहास के निर्माण के निमित्त, दोहन किया जा सकता है। इसलिए, इस कथाग्रन्थ को राष्ट्रीय इतिहास के तत्त्वों की उपलब्धि की दृष्टि से कल्पवृक्ष या कामधेनु कहना औचित्य के अधिक निकट होगा। प्राचीन परम्परा से प्राप्त उपाख्यान-समूह को इतिहास कहते हैं । इतिहास की, प्राचीन आचार्यों द्वारा निर्धारित परिभाषा के अनुसार, पुरुषार्थचतुष्टय के उपदेश से संवलित कथाओं से परिपूर्ण पूर्ववृत्त को इतिहास कहते हैं। इस प्रकार के इतिहास या ऐतिहासिक साक्ष्य-प्रधान ग्रन्थों में 'महाभारत' का सर्वाग्रणी स्थान है। 'वसुदेवहिण्डी' भी इसी अर्थ में इतिहास की संज्ञा आयत्त करने की विशेषता रखती है । बहुश्रुत कथाकार संघदासगणी ने पूर्ववृत्त के वर्णन के क्रम में ऐतिहासिक साक्ष्य का विन्यास तो किया ही है, भौगोलिक और राजनीतिक आसंग भी प्रचुर रूप में प्रस्तुत किये हैं। संघदासगणी ने 'वसुदेवहिण्डी' की इतिहासगन्धी या ऐतिहासिक आच्छादनवाली कथाओं के पात्रों और देशों की नामावली पुराण, इतिहास एवं ऐतिह्य परम्परा से आयत्त की है। १. धर्मार्थकाममोक्षाणामुपदेशसमन्वितम् । पूर्ववृत्तं कथायुक्तमितिहासं प्रचक्षते ॥ -आप्टे : संस्कृत-हिन्दी-कोश
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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