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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन
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संघदासगणी ने उक्त भारतीय स्मृतिकारों की दण्ड-व्यवस्था का गम्भीर अध्ययन किया था और तदनुसार ही उन्होंने अपनी कथा में चित्रित राजाओं से दण्डविधान का पालन कराया है।
अभयघोषणा का उल्लंघन करनेवाले अपने ज्येष्ठ पुत्र मृगध्वज को मृत्युदण्ड देने की घटना से यह सिद्ध है कि श्रावस्ती का राजा जितशत्रु दण्ड- समता के सिद्धान्त का समर्थक था । राजा सिंहसेन द्वारा श्रीभूति पुरोहित को प्रदत्त निर्वासन दण्ड भी दण्ड-समता का ही प्रत्यक्ष उदाहरण है । वसन्तपुर के राजा जितशत्रु द्वारा शूरसेन परिव्राजक को दिया गया मृत्युदण्ड भी तत्कालीन राजाओं की समतामूलक दण्डनीति को ही संकेतित करता है। इसी प्रकार, प्रशासन दुर्बल राजा महापद्म को उसके पुत्र द्वारा बन्दी बनाया जाना और पुरोहित नमुचि को निर्वासित किया दण्ड- समता का ही निर्देशन है। पुनः मथुरा के राजा अजितसेन द्वारा जिनपालित स्वर्णकार के प्रति आसक्त अपनी पटरानी मित्रवती का त्याग भी तत्कालीन राजा की दण्ड-समता का ही संज्ञापक है । कहना न होगा कि 'वसुदेवहिण्डी' में दण्ड- समतामूलक रोचक और रोमांचक उदाहरणों ततोऽधिक प्राचुर्य है । यहाँ स्थालीपुलाकन्याय से कतिपय उदाहरण दिग्दर्शनार्थ उपन्यस्त किये गये हैं ।
जाना
मृत्युदण्ड के तो विविध प्रसंग कथाकार ने उपस्थापित किये हैं। राम (परशुराम) ने सात बार पृथ्वी को नि:क्षत्रिय किया था और वह जिस क्षत्रिय का वध करता था, उसके दाँत उखाड़कर रख लेता था ( मदनवेगालम्भ : पृ. २३८ ) । राज्य द्वारा अभयदान प्राप्त मृग का वध करने के कारण वाराणसी के नलदाम बनिया के पुत्र मन्मन को फाँसी दे दी गई थी ( प्रियंगुसुन्दरी लम्भ: पृ. २९५ ) । इसी प्रकार उस युग में अदत्तादानव्रत में दोष करने के कारण भी मृत्युदण्ड की व्यवस्था थी। कथा है कि मगध- जनपद के वड्डक गाँव में अर्हदत्त का पुत्र मेरु रहता था। वह गाँव का मुखिया था। वहाँ उग्रसेन नाम का कोई दूसरा गृहस्थ रहता था । वह रात में पानी पड़ने पर खेत की क्यारियों को बाँधकर उन्हें पानी से भर देता था । फिर जब संचित पानी की गहराई का अन्दाज लेने लगता, तभी ग्रामप्रमुख मेरु उस ( उग्रसेन) की क्यारियों को काटकर अपनी क्यारियों में पानी भर लेता । उग्रसेन को जब इस बात का पता चला, तब उसने राजा से लिखित अपील की और मेरु के पिता अर्हद्दास को अपना साक्षी बनाया। राजा के पूछने पर अर्हद्दास ने यथावृत्त कह दिया। राजा ने सत्यवादी अर्हद्दास को सम्मानित किया और ग्रामप्रमुख मेरु को सूली पर चढ़वा दिया। साथ ही, ग्रामप्रमुख के अधीनस्थ खेत भी उग्रसेन को दिलवा दिये (तत्रैव : पृ. २९५) ।
उक्त कथा में चित्रित न्यायविधि और दण्ड - व्यवस्था से स्पष्ट है कि पुत्र के दोषी होने पर पिता भी उसका साथ नहीं देता था । और इस प्रकार, सत्यवादी पिता न्यायाधिकरण की दृष्टि में सम्मान के योग्य माना जाता था । इसी प्रकार उग्र दण्डनीति धारण करनेवाले वसन्तपुर के राजा जितशत्रु ने अदत्तादान के विषय में मिथ्या भाषण करनेवाले कपटश्रावक जिनदास का तलवार से सिर काट लेने की आज्ञा दी थी । पुनः मैथुनदोष के कारण, वसन्तपुर के राजा नलपुत्र ने न चाहनेवाली स्त्री, पुष्यदेव वणिक् की पत्नी को चाहनेवाले पुरोहित करालपिंग से दण्डस्वरूप गरम लोहे की स्त्री की प्रतिमा का आलिंगन करवाया था, जिससे वह मर गया ।
'मनुस्मृति' में भी परस्त्री के साथ मैथुनदोष उत्पन्न करनेवालों के लिए प्राय: इसी प्रकार का दण्डविधान किया गया है। कहा गया है कि पापी परस्त्रीरत जार पुरुष को लोहे की तप्त शय्या