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२६ . वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा है, जितने से कथा के रस का विघात न हो। पाण्डित्य के यश के लोभ से मेरा यह प्रयल नहीं है। मेरा उद्देश्य केवल यह है कि अनेक कथाओं का समूह सरलता से स्मृति में रखा जा सके।
पाश्चात्य मनीषियों ने 'कथासरित्सागर' का बड़े मनोयोग से तलस्पर्श अध्ययन किया है, जिनमें सी. एच. टॉनी, पैंगर और विशेषकर कीथ के नाम तो धुरिकीर्तनीय हैं । सी. एच. टॉनी-कृत अँगरेजी-अनुवाद की भूमिका लिखते हुए पैंगर ने 'कथासरित्सागर' की भूरिशः प्रशंसा की है और कथाकार सोमदेव की विलक्षण प्रतिभा पर विस्मयाभिभूत होकर कहा है कि ईसवी-सन् से सैकड़ों वर्ष पहले की जीव-जन्तु-कथाएँ इसमें हैं । धुलोक और पृथ्वी की रचना-सम्बन्धी ऋग्वेदकालीन कथाएँ भी यहाँ हैं। उसी प्रकार रक्तपान करनेवाले वेतालों की कहानियाँ, सुन्दर काव्यमयी प्रेम-कहानियाँ और देवता, मनुष्य एवं असुरों के लोमहर्षक युद्धों की कहानियाँ भी इस कथा-कृति में हैं। भारतवर्ष कथा-साहित्य की सच्ची भूमि है, जो इस विषय में ईरान और अरब से बढ़चढ़कर है।
पैंगर, कथाकुशल कालिदास के बाद 'कथासरित्सागर' के कर्ता सोमदेव को ही द्वितीय स्थान देते हैं। क्योंकि, सोमदेव में कालिदास की ही भाँति स्पष्ट, रोचक और हृदयाकर्षक एवं विषयों की व्यापकता और विभिन्नता से वलयित कहानी कहने की अद्भुत शक्ति थी। इनकी कथा में मानवी प्रकृति का परिचय, भाषा-शैली की सरलता, वर्णन में सौन्दर्य-चेतना और भावशक्ति तथा उक्तिचातुरी के गुण प्रचुरता के साथ भरे हुए हैं। प्रवाह-सातत्य ‘कथासरित्सागर' की अपनी विशेषता है, यही कारण है कि उसकी कहानियाँ, एक के बाद दूसरी, अपनी अभिनवता के साथ, आश्चर्यजनक वेग से उभरती हुई सामने आती चली जाती है। पैंगर, 'कथासरित्सागर' के बारे में प्रशंसामुखर शब्दों में सोल्लास कहते हैं कि यह कथाग्रन्थ अलिफ लैला की कहानियों से प्राचीनतर है और अलिफ लैला की अनेक कहानियों के मूल रूप इसमें हैं, जिनके द्वारा उपजीवित और परिबृंहित न केवल ईरानी और तुर्की लेखकों की, बल्कि बोकैशियो, चौसर, लॉ फॉन्तेन एवं अन्य अनेक पाश्चात्य कथालेखकों की कल्पनाएँ पश्चिमी संसार को प्रचुरता से प्राप्त हुई हैं। सामाजिक और राजनीतिक जीवन की अनेक रोचक-रोमांचक कहानियों से भरपूर ‘कथासरित्सागर' भारतीय कल्पना-जगत् का विराट् दर्पण है, जिसे कथामनीषी सोमदेव भावी पीढ़ियों के लिए अक्षय सारस्वत धरोहर के रूप में छोड़ गये हैं।
कीथ ने आलोचनाप्रखर मुखरता के साथ 'कथासरित्सागर' के वर्तमान संरचना-शिल्प और लम्बकों के क्रम की स्थापना की तात्त्विक विवेचना करते हुए कहा है कि प्रयास-बाहुल्य के बावजूद सोमदेव एक सुसंघटित ग्रन्थ की सफल रचना नहीं कर सके, किन्तु 'कथासरित्सागर' के उत्कर्ष का आधार उसकी वस्तु-संघटना नहीं, अपितु वह ठोस और रुचिकर कथावस्तु है, जिसे अधीती कथाकार ने सरल-सहज ढंग से मनोविनोदक और आकर्षक कलावरेण्यता के आवेष्टन में उपन्यस्त किया है।
श्रीसुशीलकुमार दे-कृत 'संस्कृत-साहित्य का इतिहास' की पृष्ठ-संख्या ४२१ की पादटिप्पणी का हवाला देते हुए डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने, बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद् से पं. केदारनाथ
१. कथासरित्सागर',१.१०-१२ २. विशेष द्र. कीथ : 'संस्कृत-साहित्य का इतिहास' (हिन्दी-अनुवाद : श्रीमंगलदेवशास्त्री), पृ. ३३४-३३५