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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप कहा है। यह 'बृहत्कथा' का ही नव्योद्भावन है, इसकी सूचना कथाकार ने कथापीठ-लम्बक के प्रथम तरंग के तीसरे श्लोक में दी है : 'बृहत्कथाया: सारस्य सङ्ग्रहं रचयाम्यहम्।'
'बृहत्कथा' के सार का संग्रह करके 'कथासरित्सागर' रचने की दूसरी सूचना कथाकार ने अन्तिम प्रशस्ति में इस प्रकार विशदतापूर्वक उपस्थित की है :
नानाकथामृतमयस्य बृहत्कथायाः सारस्य सज्जनमनोम्बुधिपूर्णचन्द्रः ।
सोमेन विप्रवर-भूरिगुणाभिराम-रामात्मजेन विहितः खलु सङ्ग्रहोऽयम् ।। 'कथासरित्सागर' में सर्ग के लिए प्रयुक्त ‘लम्बक' शब्द अपने मूल स्रोत की ओर संकेत करता है। लम्बक' अपने मूल संस्कृत-रूप में 'लम्भक' था। विवाह द्वारा स्त्री की प्राप्ति 'लम्भ' के रूप में प्रचलित थी और इसी के अनुसार अलंकारवतीलम्बक, शशांकवतीलम्बक, मदनमंचुकालम्बक, पद्मावतीलम्बक आदि अलग-अलग कथाओं के नाम रखे गये होंगे। इसीलिए, हेमचन्द्र ने अपने 'काव्यानुशासन' की टीका में बृहत्कथा को लम्भों में विभक्त कहा है। वादीमसिंह (नवीं शती)-कृत 'गद्यचिन्तामणि' में नायक द्वारा पत्नी की प्राप्ति का वर्णन करनेवाले कथाखण्डों को ‘लम्भ' की आख्या दी गई है। 'वसुदेवहिण्डी' में भी पत्लीप्राप्तिपरक प्रत्येक कथा-विभाग को 'लम्भ' नाम दिया गया है, किन्तु 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में ग्रन्थ का विभाग सर्गों में हुआ है। यह एक सर्गबद्ध रचना है, पर इसमें भी प्रत्येक कथा के अन्त में 'लाभ' शब्द प्रयुक्त है। जैसे : वेगवती-लाभ, गन्धर्वदत्ता-लाभ, मदनमंजुका-लाभ आदि ।
सोमदेव कृत 'बृहत्कथा' के कश्मीरी संस्कृत-नव्योद्भावन 'कथासरित्सागर' में कथा-विभाग के लिए प्रयुक्त लम्बक ( = लम्भक) शब्द का पत्नीप्राप्ति-परक कथा-विभाग के रूप में अर्थविस्तार बुधस्वामी के समय तक नहीं हुआ था। इसीलिए, उन्होंने बृहत्कथा' के अपने नैपाली नव्योद्भावन 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' को सामान्य काव्यों के समान सर्गों में विभक्त किया है। उसके उपलब्ध अंश में २८ सर्ग हैं । जैन या प्राकृत-नव्योद्भावन 'वसुदेवहिण्डी' में 'लम्भ' का प्रयोग, अपने मूल अर्थ में, अर्थात् मुख्य नायक के विजय के वर्णनपरक मुख्य कथाभाग के प्रकरणों के नामकरण के लिए, हुआ है।
कश्मीरी लेखक सोमदेव और क्षेमेन्द्र ने कथापीठ को पहला लम्बक कहा है और गुणाढ्य-विषयक कथावस्तु उसका प्रतिपाद्य है। किन्तु, नैपाली-रूपान्तर, अर्थात् बुधस्वामी के 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में मूल कथापीठ के अंश मिल-जुल गये हैं। कश्मीरी वाचनाओं में उदयन, वासवदत्ता और पद्मावती की सम्पूर्ण कथाएँ हैं। परन्तु, नैपाली वाचना में उसे संक्षिप्त कर दिया गया है। इसीलिए प्रो. लाकोत को यह आशंका है कि बुधस्वामी के ग्रन्थ का आरम्भिक भाग कदाचित् खण्डित है। फिर भी, उन्होंने ने यह माना है कि कश्मीरी नव्योद्भावनों की तुलना में नैपाली नव्योद्भावन मूल बृहत्कथा का यथार्थ चित्र उपन्यस्त करता है।
'कथासरित्सागर' के आरम्भ में सोमदेव ने उसके स्वरूप और वर्ण्य विषयों का समीचीन परिचय उपस्थित किया है और अट्ठारहों लम्बकों की नामतः गणना करते हुए आरम्भिक प्रतिज्ञा में कहा है कि मैं 'बृहत्कथा' के सार का संग्रह कर रहा हूँ। मेरे सामने जैसा मूल था, वैसा ही मैंने यह ग्रन्थ रचा है। थोड़ा भी हेरफेर नहीं किया है। हाँ, केवल औचित्य और एक-दूसरी कथा के साथ अन्वयन का ध्यान यथाशक्ति रखा गया है। इसमें काव्य का अंश मैंने उतना हीं जोड़ा