________________
४३६
वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
पुत्रवध के दुःख से काँप उठा। वह विषाद-विह्वल कण्ठ से बोली : 'यह मेरा पुत्र न सही, उसी (सपत्नी) का हो। इस (पुत्र) का विनाश नहीं चाहती।' वसुदेव ने आराकशों के हाथ रोक दिये ।
इसके बाद वसुदेव ने मन्त्री - सहित सभासदों से अपने निर्णय में कहा : 'आपलोगों ने देखा, इन दोनों स्त्रियों में एक ने धन की आकांक्षा व्यक्त की, पुत्र की परवाह नहीं की। पर, दूसरी ने धन त्याग दिया, पुत्र को चाहा। तो, जिसने बालक के प्रति दया दिखाई, वही बालक की वास्तविक माँ है, इसमें सन्देह नहीं । और, जो निर्दय स्त्री है, वह माँ नहीं है।' वसुदेव का फैसला सुनकर सबने उनको शिरसा प्रणाम किया।
इस कथा में किसी उलझन भरे मुकदमे को उपस्थितबुद्धि या युक्तिचातुरी से निबटाने का रोचक वर्णन तो है ही, साथ ही इससे प्राचीन राजकुल के प्रशासन-तन्त्र के कई महत्त्वपूर्ण अंगों की भी सूचना मिलती है। इस प्रकार, कथाकार ने व्यवहार (मुकदमा)- सम्बन्धी और भी कई कथाप्रसंगों (नीलयशालम्भ : पृ. १८१; केतुमतीलम्भ : पृ. ३२० आदि) की अवतारणा की है, जिनसे तत्कालीन प्राचीन न्याय- प्रक्रिया का प्रातिनिधिक आदर्शोद्भावन होता है, साथ ही विधिशास्त्र में भी कथाकार की पारगामिता की सूचना मिलती है। 'व्यवहार' शब्द आधुनिक विधिविज्ञान में विधि या कानून (लॉ) के अर्थ में प्रचलित है, किन्तु संघदासगणी ने उसे मुकदमा (वाद) और कानूनी फैसला- दोनों अर्थों की अभिव्यंजना के लिए प्रयुक्त किया है।' ('ततो ताणं ववहारो जाओ; धम्मिल्लचरित : पृ. ५७; 'समागयजणेण य मज्झत्येणं होऊण ववहारनिच्छओ सुओ; तत्रैव : ५८) प्राचीन काल में आधुनिक काल की तरह न्यायालयों और न्यायाधीशों का प्रावधान नहीं था । व्यवहार, वाद या मुकदमे की उत्पत्ति राजकुल में निवेदन से होती थी ।
न्यायाधीश के लिए संघदासगणी ने 'कारणिक' शब्द का प्रयोग किया है। ये न्यायाधीश न्यायतुला के प्रभारी होते थे । न्यायतुला भी अद्भुत और रहस्याधिष्ठित होती थी । साक्षी के अभाव में न्यायतुला का निर्णय मान्य होता था। इस प्रकार उस युग की न्यायविधि में तुला- परीक्षा का भी प्रचलन था । यों, सामान्यतः तुला, न्याय के प्रतीक रूप में परम्परागत रूप से स्वीकृत है । कथा है कि पोतनपुर में धारण और रेवती दो वणिक्- मित्र रहते थे। एक बार धारण ने रेवती के हाथ से एक लाख का माल खरीदा और शर्त रखी गई कि किस्त के हिसाब से एक लाख रुपये वापस कर देंगे । धारण उस माल से व्यापार करता हुआ समृद्धिशाली हो गया । तब, रेवती ने अपना धन वापस माँगा । लेकिन, धारण निश्चित शर्त से मुकर गया। रेवती ने राजा से लिखित अपील की और कहा कि मेरा कोई साक्षी नहीं है। तब राजा ने अपने समक्ष न्यायाधीश द्वारा बारी-बारी से इस न्याय के साथ तुला- परीक्षा कराई कि अगर धारण देनदार होगा, तो तराजू झुक जायगा और यदि रेवती देनदार होगा, तो तराजू नहीं झुकेगा। धारण के साथ न्याय के समय
१. (क) मनुस्मृति में भी 'व्यवहार' शब्द मुकदमे के अर्थ में ही प्रयुक्त है : व्यवहारान्दिदृक्षुस्तु ब्राह्मणैः सह पार्थिवः ।
मन्त्रज्ञैर्मन्त्रिभिश्चैव विनीतः प्रविशेत् सभाम् ॥ (८.१)
(ख) याज्ञवल्क्य ने भी मुकदमा को ही 'व्यवहार' कहा है :
व्यवहारान्नृपः पश्येद् विद्वद्भिर्ब्राह्मणैः सह । धर्मशास्त्रानुसारेण क्रोधलोभविवर्जितः ॥
— याज्ञवल्क्यस्मृति : मातृका - प्रकरण, श्लोक १