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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ४२५ साभिमत्तो...; ततो अमच्चो पणओ परिकहेइ सुणह अहं सेयाहिवस्स विजयस्स रण्णो सहवडिओ सचिवो; भद्रमित्रा-सत्यरक्षितालम्भ : पृ. ३५३)। 'सहवडिओ' विशेषण से राजा और अमात्य की समवयस्कता सिद्ध होती है और यह भी स्पष्ट होता है कि अमात्य राजा का मित्रस्थानीय ही होता था। इसी प्रकार, विद्याधरों के राजा अश्वग्रीव का विश्वासी अमात्य हरिश्मश्रु भी था, जो नास्तिकवादी होने के कारण धर्माभिमुख राजा को निरन्तर देहात्मवादिता की ओर प्रेरित करता रहता था (बन्धुमतीलम्भ : पृ. २७५) । इसी प्रकार, शाम्ब का विश्वस्त मित्र बुद्धिसेन भी अपने चरित्र से शाम्ब का नर्मसचिव सिद्ध होता है (पीठिका : पृ. १०४)।। __'वसुदेवहिण्डी' के उपर्युक्त विवरणों से यह समीकरण उपलब्ध होता है कि तत्कालीन राज्य-प्रशासन में मन्त्री, अमात्य और सचिव तीनों महत्त्वपूर्ण पद थे। सबका अपना-अपना उत्तरदायित्व बँटा हुआ था। मन्त्री सम्पूर्ण राज्य की प्रजाओं पर पड़नेवाले प्रभाव को ध्यान में रखकर राजा को मन्त्रणा देता था; किन्तु अमात्य और सचिव राजा की केवल व्यक्तिगत हितचिन्ता के दायित्व-बोध से सम्पन्न होते थे। इसी तथ्य को, अर्थात् सम्पूर्ण राज्य की रक्षा और केवल राजा की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए कौटिल्य ने मन्त्री और अमात्य के दो अलग-अलग पदों की सृष्टि का अभिस्ताव किया है। संघदासगणी द्वारा वर्णित मन्त्री और अमात्य के कर्तव्यों और अधिकारों से यथोक्त कौटिल्य की परम्परा का ही समर्थन होता है। कहना न होगा कि राज्य की सुरक्षा, संघटन और समुन्नति की दृष्टि से मन्त्रियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजा की प्रशासन-क्षमता की सिद्धि मन्त्रियों की योग्यता पर निर्भर रहती है। 'वसुदेवहिण्डी' के राजाओं के चरित्रांकन से स्पष्ट है कि मन्त्रियों की सहायता और मन्त्रणा के आधार पर ही उन्होंने जिस विराट् साम्राज्य की स्थापना की थी, उसकी शासन-सत्ता निरंकुश थी, उसके अतुल बल-वैभव के समक्ष किसी को भी सिर उठाने का साहस नहीं था, फिर भी उसकी प्रशासन नीति के अन्तराल में लोक कल्याण की एक व्यापक भावना सन्निहित थी, जिसका उल्लंघन तत्कालीन राजाओं ने कभी नहीं किया और सम्भवत: यही एक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है कि उन राजाओं की निरंकुश नीति में प्रजातन्त्रात्मक विचारों का आश्चर्यकारी समन्वय था। 'वसुदेवहिण्डी' में, इसी कौटिल्यानुमोदित प्रशासन-व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में, संघदासगणी द्वारा प्रतिपादित राजनयिक प्रशासन-व्यवस्था के विभिन्न आयामों का हृदयावर्जक दिग्दर्शन उपलब्ध होता है। राज्यप्रशासन-विधि : राज्यप्रशासन-विधि के अन्तर्गत तत्कालीन राजाओं और राजभवनों की संस्कृति का वर्णन भी अपना विशिष्ट महत्त्व और मूल्य रखता है। 'वसुदेवहिण्डी' से यह ज्ञात होता है कि उस समय के राजाओं की राज्यप्रशासन-विधि में हिंसा के लिए निषेधमूलक अभयघोषणा (अमाघात) अपना विशिष्ट स्थान रखती थी, साथ ही उत्तम शील, व्रत, सत्य, आर्जव, दया आदि राजाओं के उल्लेखनीय चारित्रिक गुण होते थे। राजाओं की माताएँ भी राज्य-प्रशासन में भाग लेती थीं। कथा है कि राजा रलायुध ने अपने राज्य में अभयघोषणा कराई थी और वह उत्तम शील आदि व्रत से सम्पन्न होकर माँ के साथ मिलकर राज्य का प्रशासन करता था ('घोसाविओ य रज्जे अमाधाओ, उत्तमसीलव्वयरओ सह जणणीय रज्जं पसासति'; बालचन्द्रालम्भ : पृ. २६१)। उस काल के
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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