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________________ ४२४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा का अधिकारी नहीं था। इस विवेचन से यह समीकृत निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभिषिक्त राजा को विशिष्ट मन्त्रणा देनेवाले मन्त्री कहलाते थे और राजा या युबराज के केवल सहायक संरक्षक समवयस्क मित्र प्राय: अमात्य या अमात्यपुत्र शब्द से सम्बोधित होते थे। आधुनिक अर्थ में इन्हें 'अंगरक्षक' ('बॉडीगार्ड') और 'आप्तसचिव' भी कहा जा सकता है। "वसुदेवहिण्डी' में भी मन्त्रियों के अतिरिक्त अमात्यपुत्रों, अमात्यों और सचिवों का उल्लेख हुआ है। जैसे : अर्चिमाली, पवनवेग (सचिव), आनन्द या नन्दन (अमात्यपुत्र), जाम्बवान् (अमात्य), यशोवन्त (अमात्य), मारीच (अमात्य), वसुमित्र या वसुपुत्र (अमात्य), सिंहसेन (अमात्य), सुचित्त (अमात्य), सुबुद्धि (अमात्य), सुषेण (अमात्य), हरिश्मश्रु (अमात्य) आदि। कथाकार द्वारा चित्रित इनके चरित्र-चित्रण से यह स्पष्ट होता है कि ये सभी राजा या युवराज के विभिन्न कार्यों में सहायता करते थे। इस प्रकार, ये आदेशपालक-मात्र थे। कथाकार ने इन्हें कहीं सचिव कहा है, तो कहीं अमात्य । अर्चिमाली और पवनवेग राजा अशनिवेग के सचिव थे, जो राजा के आदेश से वसुदेव को आकाशमार्ग से उड़ा ले आये थे ('राइणो संदेसेण सचिवेहिं पवणवेग-ऽच्चिमालीहिं आणित त्य', श्यामलीलम्भ : पृ. १२३)। इसी प्रकार, आनन्द, जिसका दूसरा नाम नन्दन था, कौशाम्बी के राजा हरिषेण के अमात्य सुबुद्धि की पत्नी सिंहली का पुत्र था। सुबुद्धि अमात्य ने, राजा के कुष्ठ हो जाने पर, उसकी चिकित्सा के लिए, यवनदेश के दूत के निर्देशानुसार घोड़े के बछड़े को काटकर उसके लहू में राजा को डुबाकर रखा था (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ३९)। पुन: कथाकार ने हनुमान् और जाम्बवान् को सुग्रीव का अमात्य कहा है। बाली से पराजित सुग्रीव ने हनुमान् और जाम्बवान् नामक अपने अमात्यों के साथ जिनायतन में शरण ली थी (मदनवेगालम्भ : पृ. २४३)। कुबेरदत्त के घर में रहते समय वसुदेव के पास प्रात:काल राजा सोमदेव का यशोवन्त नामक अमात्य महत्तरिकाओं के साथ आया था और उन्होंने कुबेरदत्त के परिजन के साथ मिलकर वसुदेव को दूल्हे के रूप में सजाया था (सोमश्रीलम्भ : पृ. २२४)। मारीच भी रामण का अमात्य था, जिसने रामण के निर्देशानुसार रलजटित मृग का रूप धारण कर सीता को लुभाया था (मदनवेगा. पृ. २४३) । चन्दनपुर नगर के राजा अमोघरिपु के वसुमित्र या वसुपुत्र और सुसेन (सुषेण) नाम के दो अमात्य थे, जो राजा के सभी कामों को निबटाया करते थे ('वसुमित्तसुओ सुसेणो य से अमच्चो। ते य तस्स रण्णो सव्वकज्जवट्टावगा'; प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २९३) । यहाँ प्राकृत की शब्दावली कुछ भ्रमास्पद है। वाक्य के पूर्वांश से ऐसा प्रतीत होता है कि सुषेण वसुमित्र का पुत्र था; किन्तु उत्तरांश में बहुवचनान्त प्रयोग से ऐसा आभासित होता है कि वसुमित्र और सुषेण ये दो अमात्य थे। 'वसुदेवहिण्डी' से यह संकेत प्राप्त होता है कि अमात्य राजाओं का अभिभावकत्व भी करते थे। राजा पुण्ड्र (जो वस्तुत: पुण्ड्रा नाम की बालिका थी) के ओषधि-प्रयोग द्वारा कुमारीत्व के लक्षण स्पष्ट होने पर अमात्य सिंहसेन ने ही उसका वसुदेव के साथ पाणिग्रहण कराया था (पुण्ड्रालम्भ : पृ. २१३)। संघदासगणी अमात्य और सचिव को समानार्थी मानते थे। पोतनपुर के राजा को अमात्य सुचित्त आत्मपरिचय के क्रम में अपने को सचिव कहता है। सुचित्त धार्मिक, प्रजाहितैषी और स्वामिभक्त था। ('एस पोयणाहिवस्स अमच्चो सुचित्तो नामं धम्मिओ पयाहिओ
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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