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________________ ४२२ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा राजा की मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों में सुश्रुत, बहुश्रुत, सुमति और श्रुतसागर नाम के मन्त्रियों का उल्लेख किया है । सब मन्त्रियों के सुझावों को सुनने के बाद राजा ने श्रुतसागर की सलाह मानकर स्वयंम्प्रभा के लिए स्वयंवर के आयोजन का निर्णय किया (केतुमतीलम्भ: पृ. ३१० ) । हस्तिनापुर के राजा कार्त्तवीर्य की पत्नी तारा के पुत्र सुभौम शिशु को, जो आगे चलकर युवा होने पर चक्रवर्ती राजा हुआ, राज्यविप्लव के समय राजा के दो मन्त्रियों - महर और शाण्डिल्य द्वारा कौशिक ऋषि के आश्रम में गुप्त रूप से संरक्षण प्रदान किया गया था। इससे स्पष्ट है कि मन्त्रिपरिषद् के सदस्य किसी भी सुविचारित गुप्त विषय के रहस्य को सुरक्षित रखने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते थे । मन्त्रियों द्वारा राजा के रहस्य को गुप्त रखने की बात पर कौटिल्य ने भी बहुत जोर दिया है। कौटिल्य का कहना है कि कार्यान्वित होने से पहले ही किसी गुप्त योजना का प्रकट हो जाना राजा और मन्त्रिपरिषद् दोनों के लिए अनर्थ या अनिष्टकर हो सकता है। इसीलिए कौटिल्य ने गुप्त मन्त्रणा के रहस्योद्घाटक के वध कर देने का प्रावधान रखा है ('अर्थशास्त्र': १.१४) । संघदासगणीने मन्त्रिपरिषद् की जहाँ चर्चा की है, वहाँ उसके सदस्यों में प्राय: चार मन्त्रियों का उल्लेख किया है । प्रतीत होता है, उस युग में राजा के लिए अपनी रूपयौवनवती पुत्री के स्वयंवर का आयोजन बहुत ही समस्या- प्रधान और संघर्षमूलक होता था, इसलिए राजा इस विषय पर अपने मन्त्रियों से विशेष विचार-विमर्श अवश्य करता था । कथा है कि त्रिपृष्ठ वासुदेव ने अपनी ब ज्योतिष्प्रभा की युवावस्था को देखकर, अपनी मन्त्रिपरिषद् के विपुलमति, महामति, सुबुद्धि और सागर नाम के चारों मन्त्रियों की सलाह से स्वयंवर का आयोजन कर राजाओं को सूचना भिजवाई थी । ('दारियं जोव्वणे वट्टमाणि पस्सिऊण विउलमति- महामई- सुबुद्धि-सायराण चउण्ह वि मंतीणं मयाणि गिण्ह्ऊिण सयंवरं रोवेऊण सव्वरायविदितं करेझ'; केतुमतीलम्भ: पृ. ३१४) । गन्धार - जनपद की राजधानी गन्धसमृद्ध नगर के राजा महाबल का मन्त्री सम्भिन्नश्रोत्र या सम्मिन्नश्रोता था, जिसके साथ राजा अनेक समस्याओं पर विचार करता और उसकी सलाह लेता था ('संभिण्णसोओ पुण मे मंती बहुसु कज्जेसु परिपुच्छणिज्जो नीलयशालम्भ : पृ. १६६) । सम्भिन्नश्रोत्र का अर्थ भी बड़ा मूल्यवान् है । 'प्राकृतशब्दमहार्णव' में इसका अर्थ किया गया है लब्धि - विशेषवाला । इस लब्धि से सम्पन्न व्यक्ति शरीर के किसी भी अंग से शब्द को स्पष्ट रूप से सुनने की शक्ति रखता है । सम्भिन्नश्रोत्र ने महाबल के बालसखा स्वयंबुद्ध के साथ भोगवाद के समर्थन में शास्त्रार्थ भी किया था (नीलयशालम्भ: पृ. १६७) । महाबल, स्वयंबुद्ध और सम्भिन्नश्रोत्र इन तीनों की मण्डली बराबर शास्त्रगम्भीर बनी रहती थी । कदाचित् कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' और 'मनुस्मृति' या ' याज्ञवल्क्यस्मृति' से प्रभावित होकर ही संघदासगणी ने यद्यपि एकराज्यीय शासन-प्रणाली का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने राजा को ही एकमात्र कर्त्ता, धर्त्ता और भर्त्ता माना है, तथापि मन्त्रिपरिषद् की अनिवार्यता को अस्वीकृत नहीं किया है। कौटिल्य की तरह संघदासगणी की दृष्टि से भी मन्त्री के विना राजा का कोई अस्तित्व नहीं, यह स्पष्ट संकेतित है। साथ ही, कथाकार ने अपना यह दृष्टिकोण भी उपस्थित किया है कि मन्त्री ही राजा का ऐसा सहायक है, जो विपत्ति के समय उसकी रक्षा करता है और प्रमाद के समय उसको सावधान भी करता है । इसी प्रकार के तथ्य का, अर्थात् राजा के लिए छोटे-बड़े सभी कार्यों में उत्तम मन्त्रियों की सहायता लेने का प्रस्तवन 'मनुस्मृति'
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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