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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन और चींटी आते हैं ('तेण वीसगंधेण सिरीसिवाणि अइंति किमि पिपीलिका य; सोमश्रीलम्भ : पृ. १९२)। कथाकार ने आदमी को निगल जानेवाले अजगर का भी वर्णन किया है। कंचनगुहा में बैठे व्रतनिष्ठ रश्मिवेग को पूर्वभव के वैरानुबन्धवश एक अजगर लील गया था । वह अजगर · श्रीभूति पुरोहित था, जो पाचवीं पृथ्वी से उद्वर्त्तित होकर अजगर के रूप में उत्पन्न हुआ था (बालचन्द्रालम्भ : पृ. २५८ ) । इसी प्रकार, एक ब्राह्मण बालक को राक्षस से बचाने के लिए भूतों द्वारा उसे पहाड़ की गुफा में सुरक्षित रख दिया गया, किन्तु गुफा में पहले से बैठा अजगर उसे लील गया (केतुमतीलम्भ: पृ. ३१६) । ३७७ 'वसुदेवहिण्डी' में मृगी द्वारा बच्चे का पालन-पोषण तथा एक दिन सर्पदष्ट होने पर उस बच्चे को जीभ से चाटकर निर्विष किये जाने की भी एक मनोरंजक कथा ( प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २९९) मिलती है । आश्रमवासिनी शिलायुध की पत्नी ऋषिदत्ता श्राविका ने समय पर पुत्र प्रसव किया। शिशु के पैदा होते ही वह प्रसूतिका रोग से मर गई । मृत्यु के बाद ही वह तत्क्षण, द्वितीय जन्म में, व्यन्तरी हुई और उसने मृगी का रूप धारण किया। उसके साथ एक छोटी मृगी थी । दोनों दो काले कुत्तों के साथ सामूहिक रूप से घूमती हुई आश्रम (मठ) के आँगन में पहुँची । एक मृगी ने नवजात शिशु को उठा लिया और दूसरी, बालक के मुँह में अपना थन डालकर खड़ी हो गई और बच्चे को जीभ से चाटती रही। इस प्रकार, समय-समय आकर वह मृगी उस बच्चे को दूध पिलाती रहती थी । धीरे-धीरे बच्चा बढ़कर सयाना हो गया । T एक दिन वह बालक समिधा के लिए जंगल गया हुआ था। इधर-उधर घूमने के क्रम में साँप ने उसे डँस लिया । विष से व्याकुल होकर वह बालक मरने लगा। तभी मृगी आई और उसने अपनी जीभ से चाट-चाटकर उस बालक को निर्विष कर दिया। बालक जी उठा । इस कथाप्रसंग से यह संकेतित होता है कि मृगी की जीभ में साँप के विष को नष्ट करने की शक्ति होती है। ज्ञातव्य है कि भारत में नागपूजा के साथ ही सर्पविष - चिकित्सा की प्राचीन परम्परा रही है । सुश्रुतसंहिता में 'विषचिकित्सिताध्याय' नाम का स्वतन्त्र प्रकरण ही लिखा गया है। अग्निपुराण (विषहृन्मन्त्रौषधम्, १५२) में विषनाशक मन्त्रों और ओषधियों का विशद विवरण उपलब्ध होता है । आधुनिक काल में भी साँप के विष उतारने की विधि में प्रवीण अनेक 'ओझा-गुनी ' पाये जाते हैं । वन और वनस्पति : संघदासगणी ने वन और वनस्पतियों के वर्णन के माध्यम से अनेक मूल्यवान् सांस्कृतिक पक्षों का उद्भावन किया है। भारतीय संस्कृति में वनों का बहुत अधिक महत्त्व है । हमारे प्राचीन ऋषि-महर्षि वनों में ही आश्रम बनाकर रहते थे । प्रकृति से उनका अभिन्न सम्बन्ध था । वैदिक १. साँप के विष उतारने का एक मन्त्र अग्निपुराण में इस प्रकार है : " ओं नमो भगवते रुद्राय च्छिन्द च्छिन्द विषं ज्वलितपरशुपाणये । नमो भगवते पक्षिरुद्राय दष्टकमुत्थापयोत्थापय लल लल बन्ध बन्ध मोचय मोचय वररुद्र गच्छ गच्छ वध वध त्रुट त्रुट बुक बुक भीषय भीषय मुष्टिना विषं संहर संहर ठ ठ ।” इस मन्त्र से ज्ञात होता है कि विष के अधिष्ठाता देवता शिव हैं।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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