________________
वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
हत्थरयणेण वियरमाणो सो पुरिसो..."; नीलयशालम्भ : पृ. १५७) । कामदेव सेठ का 'वल्लभ' नाम का घोड़ा भी अश्वरल में ही परिगणनीय था (बन्धुमतीलम्भ: पृ. २६९) ।
३७०
आचार्य कथाकार संघदासगणी हस्तिशिक्षा के साथ ही अश्वशिक्षा के भी विशेष ज्ञाता थे । अपनी इस विद्या के ज्ञान का संकेत उन्होंने धम्मिल्लचरित (पृ. ६६-६७) में दिया है । धम्मिल्ल ने राजा कपिल के घोड़े का दमन अश्वशिक्षा के अनुसार ही किया था । कथा है एक दिन धम्मिल्ल राजा के घोड़े को फेरने के लिए तैयार हुआ । अश्व परिचारकों ने घोड़े को लगाम, जीन आदि से सज्जित किया। उसकी पीठ पर पलान रखा गया । पलान में घुँघरू लटक रहे थे । घोड़े के मुख की शोभा के लिए चँवर बाँधे गये थे । घोड़े के लिए प्रयुक्त होनेवाले पाँच प्रकार के आभूषणों से उस घोड़े को सजाया गया था । स्वयं धम्मिल्ल ने कूर्पासक पहन रखा था; उसके पैर अद्धरुक वस्त्र से बाहर थे और उसके माथे पर फूल की कलँगी लगी थी। इस प्रकार, उसका सारा शरीर विचित्र शोभा से समन्वित था । व्यायाम के अभ्यास से उसका शरीर बिलकुल हलका था, इसलिए वह पक्षी की तरह फुरती से घोड़े के शरीर (पीठ) पर जा बैठा ।
संघदासगणी ने दो विशिष्ट घोड़ों का भी नामोल्लेख किया है। पहला है 'हंसविलम्बित' घोड़ा और दूसरा है 'स्फुलिंगमुख' घोड़ा। कथा ( प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २८५) है कि जिनदास और पुष्पदन्ता परस्पर अनुरक्त होकर एक दूसरे से विवाह करना चाहते थे। जिनदास ने अपने पिता सार्थवाह अर्हद्दास से मन की बात कही । अर्हद्दास ने पुत्र के अनुरागवश पुष्पदन्ता के पिता राजा पुष्पकेतु के समक्ष अपना प्रस्ताव रखा कि मेरे पुत्र जिनदास के लिए अपनी कन्या प्रदान करें और शुल्कस्वरूप बहुमूल्य उपहार स्वीकार करें। किन्तु राजा पुष्पकेतु ने अर्हद्दास के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब, जिनदास और पुष्पदन्ता अभिलषित स्वयंवर न पाकर हंसविलम्बित अश्व पर सवार होकर भाग निकले। इससे स्पष्ट है कि 'हंसविलम्बित' नाम का घोड़ा कोई विशिष्ट वेगवान् अश्व रहा होगा ।
'स्फुलिंगमुख' घोड़े का तो विधिवत् लक्षण ही कथाकार ने उपन्यस्त किया है। सातवें कपिलालम्भ की कथा ( पृ. १९९-२००) है कि वसुदेव जब वेदश्यामपुर के राजा कपिल के महाश्वपति वसुपालित के घर में, उसकी पुत्री वनमाला के कृत्रिम देवर के रूप में सहदेव के नाम से रहते थे, तभी वनमाला ने उनसे पूछा : “आप स्फुलिंगमुख घोड़े का दमन कर सकते हैं ?” “घोड़े को देखकर ही उसकी प्रकृति को जाना जाता है।” वसुदेव ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
पालित ने कहा : " आप स्वच्छन्दतापूर्वक घोड़े को देख सकते हैं।” उसके बाद वसुदेव ने स्फुलिंगमुख घोड़े को देखा। घोड़े का रंग खिले कुमुद (कमल) की तरह लाल था ।' उसके सारे शारीरिक लक्षण उत्कृष्ट कोटि के थे। उसकी ऊँचाई पचहत्तर अंगुल थी । वह एक सौ आठ
गुम्बा था। उसका मुँह बत्तीस अंगुल का था। उसके आवर्त ( शरीर के भँवर) शुद्ध थे । खुर, कान, केश, स्वर, आकृति, आँख और जाँघ ये सारे अंग-प्रत्यंग प्रशस्त लक्षणोंवाले थे। वह घोड़ा इतना तेजस्वी था कि उसपर सवारी करना आसान नहीं था ।
घोड़े को देखकर वसुदेव ने उसके दमन की इच्छा प्रकट की। उसके बाद उन्होंने पूजा-विधान सम्पन्न कराने और जंजीर से जुड़े टेढ़े मुँहवाले चार टकुए तैयार कराने का आदेश दिया। महाश्वपति
१. यहाँ संघदासगणी ने कुमुद-कमल को सामान्य अर्थ में लिया है। ले.