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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन के काम में अधिक प्रशस्त मानी जाती थीं। इसी प्रकार, 'समवशरण' (धर्मसभा) को भी विविध, वृन्तसहित स्थल और जल में उत्पन्न सुगन्धित फूलों से सजाये जाने की चर्चा कथाकार ने की है: “समोसरणभूमी बेंटपयट्ठाणपंचवण्णयजल-धलयसंभवसुगंध पुष्फावकारसिरी (तत्रैव : पृ. ३४५)।"
संघदासगणी ने प्रसाधन के साधनों में अन्य उपकरणों के अतिरिक्त फूल की मालाओं को भी विशेष स्थान दिया है। वसुदेव स्वयं प्रसाधन-विधि के विशेषज्ञ तथा उत्तम कोटि की मालाओं के निर्माता थे। चौबीसवें पद्मावतीलम्भ (पृ. ३५५) की कथा है कि एक बार वसुदेव घूमते-घामते कोल्लकिर नगर पहुँचे । वहाँ 'सौमनस' नाम की वनदेवी के आयतन में अन्न और पानी का वितरण हो रहा था। जगह-जगह सुसज्जित प्रपामण्डप (पनशाला) बने हुए थे । ऊँची-ऊँची गगनचुम्बी अट्टालिकाओं की सघन कतारों से वह नगर सुशोभित था। विश्राम करने की इच्छा से वसुदेव वहाँ के अशोकवन में पहुँचे । फूलों को चुनने में व्यस्त मालाकारों ने उनका साग्रह आतिथ्य किया । तभी, एक अप्राप्तयौवना बालिका ने आकर मालाकारों से कहा कि वे शीघ्र फूल सजाकर ले आयें, ताकि वह उन्हें राजकुमारी के पास ले जा सके । वसुदेव ने बालिका से यह जानकारी प्राप्त की कि वह राजकुमारी राजा पद्मरथ की पुत्री है, जो चतुर चित्रकार द्वारा चित्रित भगवती लक्ष्मी के समान सुन्दर है और कला-कुशलता में साक्षात् सरस्वती । फिर क्या था, वसुदेव ने एक ललित अवसर ढूँढ़ निकाला।
वसुदेव ने बालिका से विविध वर्ण और गन्धवाले फूल मँगवाये । बालिका फूल ले आई। वसुदेव ने लक्ष्मी के पहनने योग्य श्रीमाला (श्रीदाम) तैयार की। बालिका उस माला को लेकर जब राजकुमारी पद्मावती के पास गई, तो वह माला गूंथने की निपुणता देखकर वसुदेव को अपना अनुकूल पति ही मान बैठी और बालिका को एक जोड़ा पट्टवस्त्र तथा एक जोड़ा सोने का कड़ा उपहार में दिया । ____ 'वसुदेवहिण्डी' से यह सूचित होता है कि उस समय राजभवन में माला और इत्र (गन्धद्रव्य) के अलग-अलग प्रभारी होते थे, जो अतिथियों के स्वागत-सम्मान के लिए राजा की ओर से माला और इत्र भेंट करते थे। प्रद्युम्न जब ब्राह्मण-बालक का रूप धरकर सत्यभामा के घर के द्वार पर उपस्थित हुए थे, तब वहाँ मालाकार ने उन्हें फूल का मुकुट पहनाया था और कुब्जा ने अंगराग-लेपन दिया था। प्रद्युम्न ने प्रसन्न होकर कुब्जा (कुबड़ी) दासी के कूबड़पन को दूर करके मनोहर शरीरवाली स्त्री के रूप में परिणत कर दिया था (पीठिका : पृ. ९५) । ब्राह्मण-परम्परा में कथा है कि कृष्ण ने कुब्जा को कूबड़पन से मुक्त किया था। संघदासगणी के युग में स्त्रियाँ अलक्तक का भी प्रयोग करती थीं। कुशाग्रपुर की प्रसिद्ध गणिका वसन्ततिलका स्नान के बाद हाथ में ऐनक लेकर जब अपना प्रसाधन कर रही थी, तब उसने अपनी माँ वसन्तसेना से अलक्तक ले आने को कहा था ("माया य णाए भणिया-"अम्मो ! आणेहि ताव अलत्तयंत्ति”; धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ३२) । इसी प्रकार, वसुदेव ने श्मशान में पड़े हुए अलक्तक से अपने भाई-भाभियों के नाम क्षमापण-पत्र लिखा था। ("सुसाणोज्झियमलत्तगं गहेऊण खमावण-लेहो लिहिओ गुरूणं देवीणं य"; श्यामाविजयालम्भ : पृ. १२०)।
उस युग के प्रसाधन के साधनों में स्नेहाभ्यंग (तेल-उबटन), सुरभित गन्धचूर्ण (पाउडर) आदि वस्तुओं की भी प्रधानता रहती थी। तैलाभ्यंग (तेल-मालिश) का काम प्राय: रूपयौवनवती दासियाँ ही करती थीं। वेदश्यामपुर की वनमाला नाम की स्त्री ने वसुदेव को सहदेव नाम का अपना देवर घोषित करते हुए स्वयं उनको स्नेहाभ्यंग, उबटन आदि के साथ, मल-मलकर और रगड़-रगड़कर