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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा क्षेत्र को महत्ता न देकर व्यक्ति की महत्ता स्वीकार करता है और इस बात का भी निर्देश करता है कि प्राय: प्रत्येक अवतारी पुरुष की क्षेत्रीय स्थिति विचित्र हुआ करती है। निश्चय ही, संघदासगणी की यह कथा उद्वेजक होने के साथ ही विचारोत्तेजक भी है। ___इस कथा को 'शतपथब्राह्मण' (१.६.३.७-१०) की रूपकाश्रित मनुकथा के समानान्तर रखकर भी इसका विशेष आस्वाद लिया जा सकता है। 'शतपथब्राह्मण' की कथा है कि जलप्रलय के पूर्व मनु द्वारा सुरक्षाप्राप्त एक मत्स्य के भविष्य-निर्देशानुसार निर्मित तथा जलौघ आने पर उस (मत्स्य) के सींग में बाँधकर खींची गई नाव से मनु के उसरगिरि पर पहुँच जाने के बाद, वह तो बच गये, किन्तु सारी प्रजा का अन्त हो गया। एकाकी मनु जल में घृत, दधि, मस्त्वा और इक्षा की यज्ञाहुति डालते रहे । वर्षान्त (यज्ञान्त) में एक नारी–इडा उत्पन्न हो गई। मनु उसपर मोहित हो उठे। दोनों में परस्पर संवाद होने के बाद मनु ने इडा के साथ सम्पर्क स्थापित कर उसके सहयोग से बहुसंख्य प्रजाओं और पशुओं को जन्म दिया। मनु को प्रजापति भी कहा गया है। प्रजापति (ब्रह्मा) ने भी सृष्टि-रचना के लिए अपनी दुहिता के साथ अभिगमन किया था। इस प्रकार, जैन प्रजापति की, नास्तिक दर्शन के सिद्धान्त पर आधृत लौकिक कथा ब्राह्मण-प्रजापति की अलौकिक कथा से अधिक रोचक और तथ्यात्मक है । इस कथा प्रसंग को 'स्थानांग' (१०.१६०.१) में दस आश्चर्यों (आश्चर्यक-पद) में परिगणित किया गया है। 'वसुदेवहिण्डी' में गान्धर्व विवाह की अनेकश: चर्चा है; किन्तु राक्षस विवाह की कथाओं की तो भरमार है। पैशाच विवाह की भी यत्र-तत्र चर्चा है। सूक्ष्मता से देखने पर स्मृति-प्रोक्त आठों विवाहों के रूप इस कथाकृति में मिलते हैं। ब्राह्म, दैव, आर्ष तथा प्राजापत्य विवाह ब्राह्मणों में प्रचलित थे तथा आसुर, गान्धर्व और राक्षस विवाह विशेषतया क्षत्रियों में होता था। अधम कोटि के व्यक्ति पैशाच विवाह करते थे। स्मृतियों में उक्त आठों विवाहों के लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं : ब्राह्म विवाह में कन्या, वस्त्राभूषण-सहित वर को, उससे कुछ लिये विना, दान की जाती थी। दैव विवाह में कन्या यज्ञ करानेवाले ऋत्विक् को दी जाती थी। आर्षविवाह में कन्या का पिता वर से दो बैल शुल्क रूप में लेकर कन्या देता था। प्राजापत्य विवाह में कन्या का पिता वर और कन्या से गार्हस्थ्य-धर्म का पालन करने की प्रतिज्ञा कराने के अनन्तर दोनों की पूजा करके कन्यादान करता था। आसुर विवाह में वर, वधू को उसके पिता या पैतृक बान्धवों से खरीद लेता था। इसे 'उद्वाह' भी कहा जाता था ('आसुरो द्रविणादानात्, याज्ञ, १.६१)। वर-कन्या परस्पर प्रेम से प्रेरित होकर माता-पिता की अनुमति लिये विना ही जो विवाह करते थे, उसे गान्धर्व विवाह कहा जाता था। राक्षस विवाह में कन्या के सम्बन्धियों को युद्ध में परास्त कर कन्या को बलात् उठाकर ले जाया जाता था ('राक्षसो युद्धहरणात्; याज्ञ. १.६१ ; मनु. ३.३३)। आठवाँ पैशाच' विवाह निम्नतम १.(क) ब्राह्मोदेवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथासुरः। __गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः ॥ -मनु, ३.२१ (ख) याज्ञवल्क्यस्मृति, १५८,६१ २.(क) सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रंहो यत्रोपगच्छति स पापिष्ठो विवाहानां पैशाचश्चाष्टमोऽधमः ॥-मनु, ३.३४ (ख) याज्ञवल्क्यस्मृति,१६१
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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