SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी का मोत और स्वरूप 'वसुदेवहिण्डी' के स्वरूप के यथार्थ परिचय के लिए उसकी पृष्ठभूमि में 'बृहत्कथा' और उसकी उत्तरकालीन वाचनाओं के विषय में यहाँ विशद रूप से प्रकाश डालना समीचीन होगा। उद्योतनसूरि ( सन् ७७९ ई.) द्वारा विरचित 'कुवलयमालाकहा' के आरम्भ में 'बड्डकहा' ('बृहत्कथा') के विषय में कहा गया है : सयल-कलागम-णिलया सिक्खाविय-कइयणस्स मुहयंदा। कमलासणो गुणडो सरस्सई जस्स बद्धकहा ॥ (कुवलयमाला : पृ.३, गाथा २२) 'बृहत्कथा' क्या है, साक्षात् सरस्वती है। गुणाढ्य स्वयं ब्रह्मा है। यह 'बृहत्कथा' सकल कलाओं का आगार है। कविजन इसे पढ़कर शिक्षित बनते हैं। उद्योतनसूरि. से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व महाकवि बाण (सातवीं शती का पूर्वार्ध) ने 'बृहत्कथा' की प्रशंसा करते हुए कहा था : समुद्दीपितकन्दर्पा कृतगौरीप्रसाधना । हरलीलेव लोकस्य विस्मयाय बृहत्कथा । (हर्षचरित : मंगलाचरण : श्लो. १७) इस श्लोक में प्रयुक्त 'समुद्दीपितकन्दर्पा' विशेषण से यह स्पस्ट है कि बाण के समय तक 'बृहत्कथा' कामकथा के रूप में ही परिचित थी। वही उसका मूल रूप था। 'कृतगौरीप्रसाधना' विशेषण से सूचित होता है कि 'बृहत्कथा' का आरम्भिक पाठ शिव-पार्वती-संवाद के रूप में था। अर्थात्, पार्वती ने शिवजी से कथा सुनाने की प्रार्थना की और पार्वती की प्रसन्नता के लिएशिवजी ने जो कथा सुनाई, वही 'बृहत्कथा' हुई। इसी कथा-प्रसंग को सोमदेव ने 'कथासरित्सागर' के प्रथम लम्बक में इस प्रकार उपन्यस्त किया है : हिमालय के उत्तरी शिखर, कैलास पर सुखासीन पार्वती ने शिव से कोई नवीन कथा सुनाने का आग्रह किया। तब, शिव ने पार्वती के पली बनने की पूर्वजन्म की कथा सुनाई। इसपर पार्वती क्रुद्ध हो उठी और शिव को 'धूर्त' कहते हुए उन्हें हृद्य (मनोहर) कथा नहीं सुनाने का उपालम्भ दिया। पार्वती के व्यंग्य-वचन सुनकर शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और दिव्य कथा सुनाने का वचन दिया। इससे पार्वती प्रसन्न हो गईं। शिव को, कथा कहने के लिए उद्यत देखकर पार्वती ने स्वयं आज्ञा दी कि कथा के समय यहाँ कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न करे । नन्दी प्रवेशद्वार पर पहरा देने लगा और शिव ने कथा प्रारम्भ करते हुए कहा : “देवता सदा सुखी रहते हैं और मनुष्य सदा दुःखी। इसलिए, उनके चरित मनोहर नहीं होते। अतः, मैं दिव्य और मानुष (सुख और दुःख) दोनों प्रकृतियों से मिश्रित विद्याधरों का चरित तुम्हें सुनाता हूँ।" शिव यह कह ही रहे थे कि उसी समय उनका कृपापात्र गण पुष्पदन्त आ गया। किन्तु, द्वार पर बैठे नन्दी ने उसे भीतर जाने से रोक दिया। १.इसी कथा को क्षेमेन्द्र ने भी 'बहत्कथामंजरी' के 'कथापीठ' में प्रायः यथावत उपन्यस्त किया है।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy