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________________ ३१० वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा अतिरेक का प्रदर्शन करते थे । जन्म लेते ही धूमकेतु द्वारा अपहृत प्रद्युम्न जब युवा होकर विद्याधरलोक से लौटा, तब वह अश्रुपूर्ण आँखों से माँ के चरणों में झुक गया। माता रुक्मिणी के भी बहुत दिनों से रुके आँसू प्रवाहित हो उठे। उसने 'बेटे, तुम्हारा स्वागत है, अनेक हजार वर्षों तक जीओ' कहकर प्रद्युम्न को अँकवार में भर लिया और फिर गोद में बैठाकर उसके मुँह में अपना स्तन डाल दिया (“ सागयं पुत्त, जीवसु बहूणि वाससहस्साणि त्ति अभिनंदिड, उच्छंगे निवेसाविऊण दिण्णो मुहे थणो "; तत्रैव, पृ. ९६ ) । इसी प्रसंग में यह भी उल्लेख है कि प्रद्युम्न ने अपनी धर्ममाता विद्याधरी कनकमाला से प्रज्ञप्तिविद्या प्राप्त की थी । प्रज्ञप्तिविद्या के बल से वह पहले लघुतापस के रूप में अपनी माँ के समक्ष उपस्थित हुआ था और माँ से खीर खिलाने की जिद ठान दी थी । लघुतापस से बातचीत करती तथा दासियों को शीघ्र खीर तैयार करने का आदेश देती हुई रुक्मिणी की आँखें प्रफुल्लित हो गईं और अवचेतन में स्थित वात्सल्य के भावातिरेकवश सहज ही उसके स्तनों से दूध झरने लगा “देवी य खुड्डेण सह आलावं करें तूरावेंती य चेडीओ आगतपण्हया पफुल्ललोयणा संवुत्ता (तत्रैव, पृ. ९५ ) । इसी प्रकार, कृष्ण ने यादवयोद्धाओं से लड़ते हुए रुक्मिणी के अपहर्त्ता प्रद्युम्न पर जब अपना सुदर्शन चक्र चलाया, तब चक्राधिष्ठित यक्ष ने कृष्ण को सूचना दी कि आपने जिस पर चक्र का प्रयोग किया है, वह आपका शत्रु नहीं, वरन् पुत्र है । नारदऋषि विद्याधरलोक से आपके चिरवियुक्त पुत्र को यहाँ ले आये हैं और उन्हीं के मत से देवी का हरण किया गया है । वस्तुत रहस्य यह था कि नारद प्रद्युम्न को सामान्य स्थिति में कृष्ण से मिलवाना नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने पिता-पुत्र में भ्रान्तियुद्ध का वातावरण उत्पन्न करा दिया था। नारद की परस्पर लड़वाने की मनोवृत्ति से वैदिक परम्परा भी अपरिचित नहीं है । यहाँ भी कथाकार ने वैदिक परम्परा के ही नारद का जैन रूपान्तर उपन्यस्त किया है। 'वसुदेवहिण्डी' के अन्तर्गत यथाप्रस्तुत कृष्णचरित में, रुक्मिणी और सत्यभामा के सपत्नीत्व-भाव के कारण चलनेवाले गृहयुद्ध में नारद की भूमिका का उल्लेखनीय वैशिष्ट्य है । अस्तु सुदर्शन-चक्र की बात सुनकर कृष्ण शान्त हो गये और चक्र के प्रति पूजाभाव के साथ प्रद्युम्न को प्रीतिपूर्ण आँखों से निहारने लगे। तब, नारद की अनुमति से प्रद्युम्न कृष्ण के निकट गया और उसने उन्हें प्रणाम किया । कृष्ण ने आनन्दाश्रुपूर्ण आँखों से प्रद्युम्न को अँकवार में भर लिया और उसका माथा सूँघते हुए उसे अतिशय फलदायक आशीर्वाद दिया ('आणंदंसुपुण्णणयणेण पिउणा अंकमारोविउ अग्घायो य सिरे; पीठिका: पृ. ९६) । इसी प्रकार, अगडदत्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर जब उज्जयिनी वापस आया और अपने घर में प्रविष्ट हुआ, तब स्नेहातुर होकर रोती हुई उसकी माँ ने उसे अपने अँकवार में भर लिया था और उसका माथा सूँघा था ('अवयासियो अग्घाइयो य सीसे)। उसके साथ आई उसकी पत्नी श्यामदत्ता ने उसकी माँ के पैर छुए और माँ ने आनन्दित होकर उसे गले लगाया और घर के भीतर ले गई (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ४६) । उपर्युक्त वात्सल्य-प्रसंगों में माता-पिता के द्वारा अपने युवा पुत्रं का माथा सूँघना या गले लगाना या गोद में बैठाना तो सामान्य है, किन्तु माँ के द्वारा युवा पुत्र के मुँह में दूध टपकते स्तन का डालना वात्सल्य का विशिष्ट प्रदर्शन है। फ्रॉयडवादी आलोचक इस स्नेहातिरेक को रत्यात्मक
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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