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अध्ययन:१
'वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप
संघदासगणिवाचक भारतवर्ष के प्रमुख गद्यकारों में अन्यतम हैं। उनकी उल्लेखनीय गद्यात्मक कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' की उपलब्धि इसलिए महत्त्वपूर्ण घटना है कि इससे 'बृहत्कथा' के अज्ञात मूल स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है । यह सुनिश्चित है कि संघदासगणी ने जो 'वसुदेवहिण्डी' लिखी, उसमें उन्होंने गुणाव की 'बृहत्कथा' को ही आधार बनाया है। सुदुर्लभ कथाशक्ति से सम्पन्न 'इतिवृत्तकथक' होने के नाते उन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा, कला-चेतना और सारस्वत श्रम के विनियोग द्वारा 'वसुदेवहिण्डी' के शिल्प-सन्धान और अन्तरंग प्रतिमान में अनेक परिवर्तन किये, जिससे कि 'बृहत्कथा' से उद्गत मूलस्रोत को, नई दिशा की ओर मुड़कर स्वतन्त्र कथाधारा के रूप में संज्ञित होने का अवसर मिला। ___ 'बृहत्कथा' विशुद्ध लौकिक कामकथा थी, किन्तु संघदासगणिवाचक ने 'वसुदेवहिण्डी' को धर्मकथा और लौकिक कामकथा के मिश्रित रूप में उपस्थित किया। संघदासगणी, चूँकि जैनाम्नाय के निष्णात आचार्य थे, इसलिए आग्रहवश उन्होंने 'वसुदेवहिण्डी' में जैनधर्म और दर्शन की प्रभावना करनेवाले अनेक प्रसंगों का आसंग भी जोड़ दिया; परन्तु मूलकथा के साथ उनकी ठीक-ठीक बुनावट नहीं हो पाई और कथा की शिल्प-संघटना भी अनावश्यक बोझिल हो गई, फलतः वैसे स्थलों पर शिल्परचना-सम्बन्धी उनकी दृष्टि उदार नहीं रह सकी। हालाँकि, इससे 'वसुदेवहिण्डी' की महाकाव्यात्मक औपन्यासिक भव्यता में कमी नहीं आई है। यह बात दूसरी है कि पाठक उन धर्मदर्शनगूढ अंशों को छोड़कर मूलकथा की धारा के साथ अपने को जोड़ ले। 'वसुदेवहिण्डी' को गुणान्न की 'बृहत्कथा' का जैन रूपान्तर माननेवाले डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृतिविद्यामन्दिर से प्रकाशित अपने, 'वसुदेवहिण्डी' के, अँगरेजी-संस्करण ('वसुदेवहिण्डी : एन्
ऑथेण्टिक जैन वर्सन ऑव द बृहत्कथा') में दर्शन-ग्रन्थिल प्रसंगों को छोड़कर केवल मूलकथा काअनुवाद उपस्थित करके सामान्य कथापाठकों को अनर्थक बौद्धिक श्रम से बचा लिया है । अस्तु:
कथामर्मज्ञ संघदासगणी ने 'बृहत्कथा' की मौलिकता में 'वसुदेवहिण्डी' की मौलिकता को विसर्जित नहीं होने दिया है। उन्होंने 'बृहत्कथा' की लौकिक कामकथा को धर्मकथा और लोककथा में परिवर्तित तो किया ही, कथानायक को बदलकर सबसे अधिक महत्त्व का परिवर्तन किया। पैशाची-निबद्ध गुणान्च की 'बृहत्कथा' ('बड्डकहा') में वत्सराज उदयन के पुत्र नरवाहनदत्त कथानायक हैं, किन्तु संघदासगणी ने अन्धकवृष्णि-वंश के प्रसिद्ध महापुरुष वसुदेव को कथानायक की गरिमा प्रदान की।
गुणाब की 'बृहत्कथा' केवल प्राकृत-कथा 'वसुदेवहिण्डी' का ही मूलाधार नहीं है, अपितु 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' (बुधस्वामी), 'कथासरित्सागर' (सोमदेव) और 'बृहत्कथामंजरी' (क्षेमेन्द्र) का भी आधारोपजीव्य है। इसीलिए, सोमदेव ने 'बृहत्कथा' को विविध कथाओं के