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________________ वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ २५९ आद्याशक्ति का अपना रूप है । इसके मध्य में रवि-बिन्दु देवी के मुखरूप में, अग्नि और सोम-बिन्दु स्तनद्वय के रूप में तथा 'ह'कार की अर्द्धकला अथवा हार्द्धकला योनि-रूप में कल्पित होती है। यह हार्द्धकला अति रहस्यमय गुह्यतत्त्व है । परम सत्ता की यामल अवस्था में एक चित् तथा दूसरी आनन्द के रूप में आविर्भूत होती है, किन्तु दोनों ही कला हैं- चित्कला और आनन्दकला। ये दोनों ही निष्कल परमसत्ता को पृष्ठभूमि में रखकर उदित होती हैं। यह निष्कल परमसत्ता यदि सत् है, तो ये दोनों ही कलाएँ उसकी अन्तरंग कला चित् और आनन्द के रूप में गृहीत होने योग्य हैं। इन तीनों को मिलित रूप में सच्चिदानन्द ब्रह्म कहते हैं। वात्स्यायन ने भी कला में कामकला की आनुषंगिकता को शिव और पार्वती के रतिविलास से अनुबद्ध किया है। ज्ञातव्य है कि भारतवर्ष में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं और समग्र मानव-जीवन इन्हीं पुरुषार्थों की सिद्धि का उपाय निरन्तर ढूँढ़ता रहता है। पुरुषार्थ की सिद्धि ही जीवन का चरम लक्ष्य है। उक्त पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए वेदानुवर्ती साहित्य को चार प्रशाखाओं में विभक्त किया गया-धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्ष (दर्शन) शास्त्र । कामशास्त्र का सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ वात्स्यायन-कृत कामसूत्र है। वात्स्यायन ने कामकला को परम्परागत ज्ञानधारा के रूप में स्वीकार करते हुए लिखा है कि देवाधिदेव महादेव के प्रतिष्ठित अनुचर नन्दी ने अपने स्वामी के गृहद्वार पर उस समय कामसूत्र को एक सहस्र अध्यायों में लिखा, जिस समय शिव और पार्वती रतिक्रीडा में निमग्न थे। इस कृति को उद्दालकपुत्र श्वेतकेतु ने पाँच सौ अध्यायों में संक्षिप्त किया। श्वेतकेतु की इस कृति को बभूपुत्र पांचाल ने संक्षिप्त करते हुए एक सौ पचास अध्यायों में यथानिर्दिष्ट सात विषयों का प्रतिपादन किया : १. साधारणम् (सामान्य बाते)। २. साम्प्रयोगिकम् (कामसिद्धि के उपाय एवं साधनों की प्राप्ति)। ३. कन्यासम्प्रयुक्तकम् (विवाह की विधियाँ और उसके रूप)। ४. भार्याधिकारिकम् (पली के धर्म और कर्तव्य)। ५. पारदारिकम् (दूसरे की पत्नी के प्रेम को पाने के उपाय तथा साधन)। ६. वैशिकम् (वेश्याओं से सम्बद्ध बाते)। ७. औपनिषदिकम् (रहस्यमय, अर्थात् गुप्त रोगों के उपचार-निर्देश)। पाटलिपुत्र में निवास करनेवाली वेश्याओं के आग्रह पर दत्तक ने इस ग्रन्थ के वेश्यालयों से सम्बद्ध अंश का पृथक् रूप में प्रतिपादन किया और पांचाल-प्रणीत ग्रन्थ के अन्य विषयों का प्रतिपादन क्रमश: चारायण, सुवर्णनाभ, घोटकमुख, गोनीय, गोणिकापुत्र तथा कुचुमार ने किया था। वात्स्यायन ने स्वीकार किया है कि उनका कामशास्त्र पांचाल-रचित ग्रन्थ पर आधृत है। १. तान्त्रिक वाङ्मय में शाक्तदृष्टि (द्वि.सं), पृ.८९ और २६१ २. कामसूत्र,४ ३. तत्रैव, ५ ४. तत्रैव, ३८१
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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