________________
२३०
वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
गुण- होता है) के कारण उड़ती-सी मालूम होती थी और कौंधती बिजली की तरह दुष्प्रेक्ष्य होते हुए भी दर्शनीय
1
यह सामान्य असि नहीं, अपितु 'असिरत्न' था । इसे देखकर धम्मिल्ल विस्मित रह गया । तलवार की परीक्षा के खयाल से धम्मिल्ल ने उसे कसकर मुट्ठी से पकड़ा और घने पुराने वंशगुल्म पर चला दिया । केले के धड़ की भाँति वंशगुल्म के टुकड़े हो गये । तलवार की तीक्ष्णता देखकर धम्मिल्ल विस्मयाभिभूत रह गया (तत्रैव : पृ. ६७)।
स्पष्ट है कि वीर पुरुष तलवार को व्यवहार में लाने के निमित्त उसकी पूर्वपरीक्षा करते थे । इस प्रकार की खड्गपरीक्षा की कथा विमलसूरि ने 'पउमचरिय' में भी किया । राम जब दण्डकारण्य पहुँचे, तब वहाँ एक दिन लक्ष्मण को एक तलवार मिली। राम ने उसकी शक्तिपरीक्षा के लिए उससे झुरमुट पर वार किया था।
के
प्राकृत-कथा-साहित्य में प्रायः सर्वत्र तलवार को, रूप-रंग की दृष्टि से, नीलोत्पल या अतसीपुष्प सदृश नीलाभ बताया गया है। यह उत्तम तलवार के लक्षण को अभिव्यक्त करता है। प्राचीन संस्कृत-साहित्य में भी तलवार वीर रस की जननी मानी गई है। वीर रस की पुष्टि के लिए नायक का तलवार की मूठ परं हाथ रखना अनिवार्य होता था । किन्तु, संघदासगणी की तलवार -विषयक परिकल्पना की द्वितीयता कदाचित् दुर्लभ होगी ।
संघदासगणी ने अनेक प्रकार के प्राचीन शस्त्रास्त्रों का उल्लेख किया है। गदा, पुराकाल के युद्ध में प्रचलित प्रमुख आयुध थी। 'वसुदेवहिण्डी' में भी प्रसंग आया है कि सिंहपुर के राजा सिंहरथ से युद्ध करते समय वसुदेव ने उसके रथ के घोड़ों को सारथी - सहित बेध डाला था और उनके युद्ध-सहयोगी कंस ने गदा के प्रहार से उसके रथ की धुरी का अग्रभाग तोड़ डाला था ('कंसेण य से फलिहप्पहारेण रहधुरातुंडं भग्गं; श्यामा- विजयालम्भ : पृ. ११९) ।
अर्द्धचन्द्र और आरामुख तो उस काल के प्रमुख आयुध थे; क्योंकि संघदासगणी ने 'वसुदेवहिण्डी' में बड़े आग्रह के साथ इनकी चर्चा की आवृत्ति की है । धनुर्वेद प्रशिक्षित अगडदत्त, जब अपनी प्रेयसी श्यामदत्ता को साथ लेकर, रथ पर अपना देश (कौशाम्बी से उज्जयिनी) लौट रहा था, तभी रास्ते में उसे यात्रा की निर्विघ्नता के लिए अनेक शस्त्रास्त्रों के प्रयोग करने पड़े । पहले तो सामने उपस्थित आक्रमणोद्यत मतवाले हाथी के कुम्भ पर उसने तीन बाण छोड़े। हाथी जोरों से चिग्घाड़ता और तरुशाखाओं को तोड़ता हुआ भाग निकला। रथ के कुछ दूर आगे बढ़ने पर एक भयानक साँप देखकर श्यामदत्ता भयत्रस्त हो उठी । घोड़े और रथ की आवाज सुनकर साँप क्रोधाभिभूत हो उठा था । अगड़दत्त ने अर्द्धचन्द्र ( वृद्धशांर्गधर - प्रोक्त बाण - विशेष ) से उसका फन काट डाला। स्पष्ट है कि अर्द्धचन्द्र वेध्यास्त्र न होकर छेद्यास्त्र था ।
साँप के मरने के बाद एक भयानक व्याघ्र रास्ते में आ खड़ा हुआ । तब अगडदत्त ने उसके मुँह पर पाँच बाण छोड़े। उस भयंकर बाण - प्रहार से वह भी भाग खड़ा हुआ । उसके बाद चोरों का एक दल विघ्न बनकर सामने आया। सभी चोर अनेक शस्त्रास्त्रों और कवचों से लैस थे । उन्होंने अगडदत्त को चारों ओर से घेर लिया। अगडदत्त अस्त्र-शस्त्र के संचालन में बड़ा निपुण था । उसने बड़े कौशल से बाण छोड़ना शुरू किया। शरप्रहार से वित्रासित चोर इधर-उधर भागने लगे। तभी चोरों को आश्वस्त करता हुआ उनका सेनापति अर्जुन रथप्रहार के योग्य