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________________ २०० वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा करने की भी प्रथा थी। पाकशास्त्री द्वारा तैयार किये गये भोजन का वर्णन स्वयं वसुदेव करते हैं: 'भोजन तैयार हो गया है', इस प्रकार कहते हुए पाकशास्त्री उपस्थित हुए। तब धाई ने कन्या से कहा : “बेटी ! तुम भी जल्दी नहा लो। अब भोजन करने के बाद कुमार को देखोगी।" धाई की बात मानकर प्रभावती चली गई। मैं भी सोना, रत्न और मणि के पात्रों में लाई गई भोजन-सामग्री का आनन्द (आस्वाद) लेने लगा। भोजन चतुर चित्रकार के चित्रकर्म की भाँति मनोहर था, संगीतशास्त्र के अनुकूल गाये गये गीत के समान उसमें विविध वर्ण थे, बहुश्रुत कवि द्वारा रचित "प्रकरण' के समान उसमें अनेक रस थे, प्रियजन की सम्मुख-दृष्टि की भाँति वह स्निग्ध था, सर्वोषधि के समान तथा मिलाकर तैयार किये गये सुगन्ध द्रव्य के समान वह सुगन्धपूर्ण था, साथ ही जिनेन्द्र के वचन के समान हितकारी भी था। खाने के बाद जब मैं शान्त हुआ, तब मैंने ताम्बूल ग्रहण किया (प्रभावतीलम्भ : पृ. ३५२)।” ___ भोजन के बाद ताम्बूल-ग्रहण का उपदेश 'भावप्रकाश' में भी उपलब्ध होता है। रतिकाल में, सोकर उठने पर, स्नान और भोजन के बाद, वमन करने के बाद, युद्ध एवं राजाओं और विद्वानों की सभा में ताम्बूल-चर्वण का आदेश भावमिश्र ने किया है। ताम्बूल को 'सुरपूजित' और 'स्वर्गदुर्लभ' कहा गया है। इसके अनेक गुण और ग्रहण की विधियाँ आयुर्वेद में वर्णित हैं।' 'भावप्रकाश निघण्टु' में ताम्बूल का गुणवाचक एक मनोरम श्लोक है : ताम्बूलं कटुतिक्तमुष्णमधुरं क्षारं कषायान्वितं वातघ्नं कफनाशनं कृमिहरं दौर्गन्ध्यदोषापहम् स्त्रीसम्भाषणभूषणं धृतिकरं कामाग्निसन्दीपनं ताम्बूलस्य सखे त्रयोदश गुणा: स्वर्गेऽप्यमी दुर्लभाः ॥ सत्यनारायण-पूजा के समय ताम्बूल-अर्पण का जो मन्त्र है, उसमें उसे 'सुरपूजित' कहा गया है: लवङ्गकर्पूरयुतं ताम्बूलं सुरपूजितम् । प्रीत्या गृहाण देवेश मम सौख्यं विवर्द्धय ॥ कहना न होगा कि न केवल भारतीय चिकित्साशास्त्र में, अपितु सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति में, ताम्बूल भोजनोत्तर मुखसुगन्धि का ही नहीं, अपितु श्रेष्ठतर सम्मान का भी प्रतीक है। कन्नौज-नरेश से उनकी राजसभा में पान के दो बीड़े एवं बैठने के आसन प्राप्त करना बड़े सम्मान की बात मानी जाती थी :ताम्बूलद्वयमासनं च लभते यः कान्यकुब्जेश्वरात्।' गर्भप्रकरण : चिकित्साशास्त्र में शरीरी ही अधिकृत है, इसलिए शरीरी की उत्पत्ति के परिज्ञान के निमित्त आयुर्वेद में 'गर्भप्रकरण' नाम से स्वतन्त्र अध्याय की ही सृष्टि की गई है। महर्षि अग्निवेश-प्रणीत 'चरकसंहिता' तथा वाग्भट-कृत 'अष्टांगहृदय' के शारीरस्थान में इस सन्दर्भ को 'गर्भावक्रान्ति' १. भावप्रकाश, श्लोक १८०-१८१ एवं १८९-१९६ ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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