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________________ १९२ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति को वृहत्कथा कि “जीवन के आलोच्य सभी विषयों का, इस शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय बनना ही इस बात का साक्षी है कि यह जीवन का विश्लेषण करनेवाला शास्त्र है।" ___ निश्चय ही, 'वसुदेवहिण्डी' की समस्त कथाएँ जीवन का विश्लेषण उपस्थित करती हैं, इसलिए उनमें जीवन-विश्लेषक ज्योतिस्तत्त्वों का समाहार, इस कथाग्रन्थ के महान् स्रष्टा के व्यापक जीवनोद्देश्य का परिचायक है, इसमें सन्देह नहीं। (ख) आयुर्वेद-विद्या आयुर्वेदशास्त्र यद्यपि स्वतन्त्र रूप से विकसित हुआ है, तथापि ज्योतिषशास्त्र और तन्त्रविद्या से इसकी प्रसक्ति और प्रत्यासत्ति बराबर बनी रही। भेषज का निर्माण, रोगी की परीक्षा, रोगी के शुभाशुभ स्वप्न के आधार पर उसके जीवन-मरण का निश्चय, वैद्य को बुलाकर ले जानेवाले दूत के लक्षण आदि शकुनशास्त्रीय समस्त तत्त्वों का ज्ञान एक कुशल वैद्य के लिए अनिवार्य था। ज्योतिष-ज्ञान के विना ओषधियों का निर्माण यथासमय सम्पन्न नहीं किया जा सकता। कारण स्पष्ट है कि ग्रहों के तत्त्व और स्वभाव को ज्ञात कर तदनुसार उसी तत्त्व और स्वभाववाली दवा का निर्माण करने से वह (दवा) रामबाण की तरह अमोघ होती है। प्राचीन काल के वैद्य एक अच्छे ज्योतिषी भी होते थे, इसलिए वे ग्रहतत्त्वों के ज्ञान से सम्पन्न थे और सुन्दर तथा अपूर्व गुणकारी दवाओं का निर्माण कर सकते थे और जिस रोगी की चिकित्सा करना स्वीकार करते थे, उसे अवश्य ही रोगमुक्त कर देते थे, पुन: अशुभ शकुन के लक्षणों के आधार पर जिस रोगी के रोग को असाध्य मानते थे, उसकी चिकित्सा करने से साफ इनकार कर देते थे। ज्योतिष के अंगलक्षण की भाँति आयुर्वेद में भी अंगलक्षण का विधान सुश्रुत ने किया है। दीर्घायु व्यक्ति की लम्बाई एक सौ अंगुल की मानी गई है (सूत्रस्थान : ३५.१२) । ज्योतिष की गणना के आधार पर, ज्योतिर्विद् वैद्य रोगियों के मृत्युयोग की भी जानकारी प्राप्त कर लेते थे और तदनुसार ही इनकी (रोगियों की) बीमारी की सुसाध्यता, दुस्साध्यता और असाध्यता का निर्णय करते थे। स्पष्ट है कि ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान द्वारा रोगी की चर्या और चेष्टा को अवगत कर बहुत कुछ अंशों में रोग की मर्यादा जानी जा सकती है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ 'चरकसंहिता', 'सुश्रुतसंहिता' (ई. पू. ३०० के लगभग), वाग्भटसंहिता' (अष्टांगहृदय : सम्भवत: संघदासगणी के समकालीन) आदि में रोगी की रोग-मर्यादा जानने के अनेक नियम आये हैं। अतएव, जो चिकित्सक आवश्यक ज्योतिस्तत्त्वों को जानकर चिकित्साकर्म को सम्पन्न करता है, वह अपने इस कार्य में अधिक सफल होता है। ज्योतिषशास्त्र के सम्यक् ज्ञान से साधारण व्यक्ति भी अनेक रोगों से बच सकता है; क्योंकि अधिकांश रोग सूर्य और चन्द्रमा के विशेष प्रभावों से उत्पन्न होते हैं। 'फायलेरिया' रोग चन्द्रमा के प्रभाव के कारण ही एकादशी और अमावास्या को बढ़ता है। कहना न होगा कि ज्योतिषशास्त्र १. भारतीय ज्यौतिष' : डॉ. नेमिचन्द्र शस्त्री : संस्करण आदि पूर्ववत्, पृ. २९ १. द्र. (क) 'चरकसंहिता', सूत्रस्थान, खुड्डाकचतुष्पाद अध्याय; (ख) सुश्रुतसंहिता, सूत्रस्थान, उनतीसवाँ विपरीताविपरीतस्वप्ननिदर्शनीय अध्याय.तीसवाँ पंचेन्द्रियार्थविप्रतिपत्ति अध्याय,इकतीसवाँ छायाविप्रतिपत्ति अध्याय, बत्तीसवाँ स्वभाविप्रतिपत्ति अध्याय, तैंतीसवाँ आवरणीय अध्याय, चौंतीशवाँ युक्तसेनीय अध्याय, पैंतीसवाँ आतुरोपक्र-मणीय अध्याय आदि; (ग) 'अष्टांगहृदय',शारीरस्थान, छठा दूतादिविज्ञानीय अध्याय ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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