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वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ
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और आकृति बड़ी कर्कश थी। जब वह युवती हुई, तब उसे कोई युवा पसन्द नहीं करता था । उसके स्तन और नितम्ब ढले हुए थे । इसलिए वह अवांछित वृद्धकुमारी हो गई थी (पृ. २३२) ।
संघदासगणी ने न केवल मनुष्यों और विद्याधरों के, अपितु पशुओं और पक्षियों के भी अंगलक्षणों का उल्लेख किया है। अट्ठारहवें प्रियंगुसुन्दरीलम्भ की कथा है : वसन्तपुर में राजा जितशत्रु रहता था । उसके दो गोमण्डल थे। उनमें दो गोमाण्डलिक नियुक्त थे : चारुनन्दी और फल्गुनन्दी । गायों में जो खूबसूरत होती या वर्ण, रूप, शारीरिक संरचना, सींग, आकृति आदि की दृष्टि से कल्याणकारिणी, मंगलमयी, खोट-रहित और उत्तम थनोंवाली होतीं, उन्हें चारुनन्दी राजा की गायों में गिनती करता और इसके विपरीत जो गायें बदसूरत होतीं या वर्ण आदि की दृष्टि से अकल्याणकारिणी, अमंगलमयी, खोट-युक्त, मरखण्डी, भयंकर तथा थन-विहीन होतीं, उन्हें अपनी गायों में गिनती करता । किन्तु, फल्गुनन्दी खूबसूरत तथा उपर्युक्त शुभ लक्षणों से युक्त गायों को अपनी मानता और बदसूरत एवं कुलक्षण गायों को राजा की समझता (पृ. २९७)।
बहुविषयज्ञ कथाकार ने जिस प्रकार गायों के अंगलक्षणों को निरूपित किया है, उसी प्रकार घोड़ों और हाथियों के भी अंगलक्षणों को उपन्यस्त किया है । स्फुलिंगमुख घोड़े के अंगलक्षणों को बताते हुए कथाकार ने कहा है कि उसके सारे अंगलक्षण उत्कृष्ट कोटि के थे। उसका रंग खिले कुमुद (कमल) की भाँति लाल था । उसकी ऊँचाई पचहत्तर अंगुल थी । वह एक सौ आठ थे अंगुल लम्बा था । उसका मुँह बत्तीस अंगुल का था। उसके आवर्त ( शरीर के भँवर) शुद्ध खुर, कान, केश, स्वर, आकृति, आँख, जाँघ, ये सारे अंग-प्रत्यंग प्रशस्त लक्षणोंवाले थे । वह घोड़ा इतना तेजस्वी था कि उसपर सवारी करना कठिन था (कपिलालम्भ : पृ. १९९-२०० ) ।
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हाथियों में गन्धहस्ती को श्रेष्ठ माना गया है। इसे कथाकार ने 'उत्तम - भद्दलक्खणोववेओ' (उत्तम और मंगलमय लक्षणों से युक्त) कहा है ( श्यामलीलम्भ: पृ. १२२ ) । ऐरावत के समान श्रेष्ठ विमलवाहन नामक चार दाँतोंवाला हाथी संहनन (काया) और आकृति के उत्तम लक्षणों से युक्त तथा नौ सौ धनुष (छत्तीस सौ हाथ) ऊँचा था (नीलयशालम्भ: पृ. १५७) । मयूरशावक के अंगलक्षण निरूपित करते हुए कथाकार ने बताया है कि वह देखने में स्निग्ध-मनोहर था, पिच्छ से उसका सारा शरीर आच्छादित था और उसपर अनेक चित्र-विचित्र चन्द्रक चमक रहे थे । इसी प्रकार, कथाकार ने मृगों, सर्पों, कुक्कुटों, कबूतरों आदि के अंगों के प्रशस्त लक्षणों को निरूपित करने में अंगविद्या में अपने सूक्ष्म प्रवेश और परिज्ञान का प्रौढ़ परिचय उपस्थित किया है।
उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि संघदासगणी ने ज्योतिष-विद्या के प्रमुख अंगों में उल्लेख्य सामुद्रिकशास्त्र का गहन शास्त्रीय अध्ययन किया था, जिसका सन्दर्भोचित समायोजन अतिशय निपुणता के साथ अपनी इस बृहत्कथा में किया है ।
पुरुष - लक्षण और आयु - विचार :
पुरुषों के लक्षण और आयुविषयक विचार, दोनों ज्योतिष - विद्या के फलित पक्ष के महत्त्वपूर्ण अंग सामुद्रिकशास्त्र के ही अन्तर्गत हैं। इसलिए इस क्रम में संघदासगणी के एतद्विषयक तथ्यों पर दृष्टिपात अप्रासंगिक नहीं होगा ।