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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा के पिता के निकट सफल होगी।' उन्होंने ज्योतिषी से पूछा : ‘वे कैसे हैं और हम उन्हें कैसे जानेंगे?' तब, उत्तर मिला : 'तुम उन्हें यहीं देखोगे। तुम्हें जो एक लाख मुद्राएँ तुष्टिदान के रूप में देंगे, उन्हें ही अपना अभीष्ट पुरुष समझोगे।” यह कहकर उन दोनों ने वसुदेव के पैरों पर सिर रखकर प्रणाम किया। (पुण्ड्रालम्भ : पृ. २११)
वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित अरिंजयपुर नगर के राजा मेघनाद की पुत्री पद्मश्री के बारे में देविल नामक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि “यह राजकुमारी किसी चक्रवर्ती राजा की प्रधान महिषी होगी (मदनवेगालम्भ : पृ. २३१)।" .
लक्षणवेत्ताओं ने मय विद्याधर की पुत्री मन्दोदरी के विषय में भविष्य-भाषण किया था कि इसकी पहली सन्तान कुलक्षय का कारण बनेगी (तत्रैव : पृ. २४०) । राजा पद्मरथ ने अपनी पुत्री पद्मावती के पति के विषय में विश्वसनीय शास्त्रज्ञान से सम्पन्न सिद्धवचन ज्योतिषी से पूछा, तो ज्योतिषी ने ज्योतिष की गणना करके बताया कि आपकी पुत्री पद्मावती तो ऐसा राजा दूल्हा प्राप्त करेगी, जिसके कमल जैसे पैरों को हजारों राजा विनय के साथ पूजते हैं।” राजा ने जब प्रश्न किया कि 'वह वर कहाँ मिलेगा, और हम उसे कैसे जानेंगे', तब ज्योतिषी बोला : “शीघ्र ही वह यहाँ आयगा और (पद्मावती के पास) श्रीमाला बनाकर भेजेगा और फिर वह हरिवंश की यथार्थ उत्पत्ति की कथा कहेगा।” यह कहकर ज्योतिषी चला गया।
कहना न होगा कि 'वसुदेवहिण्डी' में इस प्रकार की रोचक और रोमांचक, मनोरंजक और विस्मयकारक भविष्यवाणियों की भरमार है।
बृहस्पतिशर्मा नाम के ज्योतिषी ने सिंहदंष्ट्र की पुत्री नीलयशा का विवाह अर्द्धभरत के स्वामी के पिता वसुदेव के साथ होने की भविष्यवाणी की थी (नीलयशालम्भ : पृ. १८०) । एक बार वसुदेव को राजगृह में जरासन्ध के सिपाहियों ने द्यूतशाला में पकड़ लिया। जूए में वसुदेव ने एक करोड़ जीतकर दीनों-दरिद्रों में बाँट दिया था। उन्होंने सिपाहियों से जब अपने अपराध का कारण पूछा, तब उन्होंने बताया कि प्रजापति शर्मा नाम के ज्योतिषी ने राजा जरासन्ध से कहा है: “राजन् ! कल आपके शत्रु का पिता यहाँ आयगा।” राजा ने जब ज्योतिषी से पूछा कि उसे कैसे जानेंगे, तब उसने कहा : “जूए में जो एक करोड़ जीतकर दीनों में उसे बाँट देगा, वही आपके शत्रु का पिता होगा।” इस प्रकार, वसुदेव के बन्दी बनाये जाने का कारण ज्योतिषी की भविष्यवाणी ही थी।
रथनूपुरचक्रवालपुर के विद्याधर-राजा ज्वलनजटी के दरबार में रहने वाला सम्भिन्नश्रोत्र ज्योतिषी साक्षात् ज्योतिपुरुष था। उसे विशेष लब्धियाँ-ऋद्धियाँ उपलब्ध थीं। वह शरीर के किसी भी अंग से शब्द को सुन लेने की शक्ति से सम्पन्न था। एक दिन ज्वलनजटी ने सम्भित्रश्रोत्र से पूछा : “मैं अपनी पुत्री स्वयम्प्रभा को किसके हाथ सौं, राजा अश्वग्रीव को या किसी अन्य विद्याधरनरेश को?” सम्भिन्नश्रोत्र ने ज्योतिर्बल से विचार कर कहा : “राजा अश्वग्रीव अल्पायु है। यह कन्या तो वासुदेव (कृष्ण) की अग्रमहिषी होगी। वह (वासुदेव) राजा दक्षप्रजापति के पुत्रं त्रिपृष्ठ के रूप में उत्पन्न हुए हैं। उन्हें ही इसे दे दीजिए। मैंने ज्ञानदृष्टि से देख-सुनकर कहा है।" ज्वलनजटी ने स्वीकृतिपूर्वक ज्योतिषी से कहा “वैसा ही होगा, जैसा आपने कहा है (बन्धुमतीलम्भः पृ. २७६) ।”