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नीलयशालम्भ :
२२. कौए और हाथी की कथा (पृ. १६८); २३. तुच्छ सुख की कल्पना करनेवाले सियार
की कथा (पृ. १६८) ।
सोमश्रीलम्भ :
२४. आर्यवेद और अनार्यवेद की उत्पत्ति की कथा (पृ. १८३) ।
धनश्रीलम्भ :
२५. नरमांसभक्षी सौदास की उत्पत्ति - कथा (पृ. १९७)।
पद्मालम्भ :
वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
२६. धनुर्वेद की उत्पत्ति-कथा (पृ. २०२) ।
पुण्ड्रालम्भ :
२७. चित्तवेगा की आत्मकथा (पृ. २१४)।
मदनवेगालम्भ :
२८. रामायण की कथा (पृ. २४० ) ।
प्रियंगुसुन्दरी लम्भ:
१४९
पद्मावतीलम्भ :
२९. गंगरक्षित की कथा (पृ. २८९); ३०. परदार-दोष के सम्बन्ध में कौए की कथा (पृ. २९२); ३१. प्राणातिपात के गुण-दोष के विषय में यमपाश की कथा (पृ. २९४); ३२. मिथ्यावचन के गुण-दोष के विषय में धारण और रेवती की कथा (पृ. २९५); ३३. अदत्तादान के दोष के विषय में जिनदास की कथा (पृ. २९५) ३४. मैथुन के दोष के सम्बन्ध में जिनपालित की कथा (पृ. २९६); ३५. परिग्रह के गुण-दोष के बारे में चारुनन्दी और फल्गुनन्दी की कथा (पृ. २९७); ३६. राजकुमारी सुमति की कथा (पृ. ३२७); ३७. कबूतर और बाज की कथा (पृ. ३३७), ३८. कुन्थुस्वामी का चरित (पृ. ३४४), ३९. अरजिन का चरित (पृ. ३४६) । केतुमतीलम्भ :
४०. इन्द्रसेना की कथा (पृ. ३४८) ।
४१. हरिवंश की उत्पत्ति - कथा (पृ. ३५६) आदि ।
'वसुदेवहिण्डी' के स्थापत्य की दूसरी विशेषता पूर्वदीप्ति - प्रणाली या प्रत्यक्-दर्शन-शैली ('फ्लैशबैक' की पद्धति) है । इस पद्धति द्वारा संघदासगणी ने पूर्वजन्म की विविध - विचित्र घटनाओं का जातिस्मृति द्वारा स्मरण कराकर कथाओं में रसवत्ता, कुतूहल और सौन्दर्य का समावेश किया है। इस विशेषता द्वारा कथाकार ने वर्त्तमान कथाप्रसंग को सहसा किसी विगत के घटनासूत्र से जोड़कर कथा को विकसित करने का महनीय कौशल प्रदर्शित किया है। इस सन्दर्भ में अग्रांकित पूर्वभव-कथाएँ भी प्रमुख प्रकीर्ण या संकीर्ण कथाओं में निदर्शनीय हैं।
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