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१३६ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा निरखने-परखने के क्रम में उसे अपनी माता ही पसन्द आ गई। उसके लिए उसने इच्छित शुल्क भी दिया। ___ सन्ध्या में नहा-धोकर ज्योंही वह अपनी वेश्या-माता के पास चला, त्यों ही एक देवी बछड़े के साथ गाय का रूप धरकर उस गोपदारक के समक्ष आ खड़ी हुई। गोपदारक ने अपने अशचि-लिप्त गन्दे पैर को बछड़े पर रखकर पोंछने लगा। उस बछड़े ने मनुष्यवाणी में गाय से पूछा : “माँ, यह कौन आदमी अपने अशुचि-लिप्त गन्दे पैर को मुझपर रखकर पोंछ रहा है?" गाय ने कहा : “बेटे ! गुस्सा मत करो। यह अभागा अपनी माँ के पास अकृत्य करने जा रहा है।" यह कहकर देवी अदृश्य हो गई और प्रतिबोधित गोपदारक उस नीच कृत्य से विरत हो गया।
प्रस्तुत मिथक-कथा की मिथकीय चेतना के अनुसार, इसके पात्र गाय-बछड़े अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करते हैं और मानुषी भाषा का व्यवहार करते हैं। अतएव, यह पशुकथा नैतिक उपदेश देने के साथ-साथ व्यंग्याभास (आयरनी) द्वारा सामाजिक आलोचना भी करती है। साथ ही, इसमें धर्म के मिथकीकरण (माइथोलाइजेशन) का भी सूत्र खुलता है। इस कथा में मिथकों का नैतिकीकरण (एथिकलाइजेशन) भी हुआ है, इसलिए समगोत्ररति का निषेध भी किया गया है।
इसी प्रसंग में नीतिश्लोकों का पाठ करनेवाले भानु के सुग्गे और शाम्ब की मैना की मिथकीय बोधवाली कथा (मुख : पृ. १०५) को भी उदाहृत किया जा सकता है। या फिर, गन्धर्वदत्तालम्भ की, उस बकरे की कथा (पृ. १४९) को निदर्शित किया जा सकता है, जिसे वसुदेव ने नमस्कार-मन्त्र को हृदयंगम करने का उपदेश दिया था और बकरे ने अपने अश्रुपूर्ण मुख को उनके प्रति प्रणाम की मुद्रा में झुकाकर उपदेश को स्वीकृत करने का भाव प्रदर्शित किया था। 'वसुदेवहिण्डी' में इस प्रकार की अनेक पशुकथाएँ हैं, जिनमें मिथकीय परीकथा तथा निजन्धरी लोककथा की सन्धि उपस्थित हुई है।
निजन्धरियाँ भी मिथकीय बोधवाली कथाओं के प्रतिरूप हैं। लोक-साहित्य एवं आभिजात्य-साहित्य की सन्धिभूमि पर अवस्थित निजन्धरियों में इतिहास एवं लोकतत्त्व का समन्वय होता है। ऐतिहासिक एवं सौन्दर्यबोधात्मक सामग्री को लोकतत्त्वों के तानों-बानों में बुनकर निजन्धरियों का निर्माण होता है। मिथकीय चेतना से युक्त निजन्धरियाँ देश और काल के अक्ष से विमुक्त नहीं होती, अपितु इनकी ऐतिहासिक चेतना देश एवं काल के अक्षों को थोड़ा अदल-बदल देती हैं। डॉ. रमेश कुन्तलमेघ ने कहा है : “निजन्धरी में खुद इतिहास ही रोमांस की ओर पुरागमन करता है तथा निजन्धरी अभिप्राय (लीजेण्डरी मोटिव्ज) इतिहास के समय, पात्र, घटना, अनुभव, देश, समस्या आदि का सामान्यीकरण कर देते हैं। ये सामान्यीकृत अभिप्राय मानवीय वृत्तियों के रूपक एवं वाहक भी हो जाया करते हैं। इसलिए, कुल मिलाकर निजन्धरियाँ ग्राम्य-संस्कृति का संश्लेषण हुआ करती हैं। मिथक और निजन्धरी में सूक्ष्म अन्तर यह है कि एक यदि प्रागैतिहासिक होता है, तो दूसरी ऐतिहासिक रोमांस का सूत्रपात करती है।
आचार्य संघदासगणी-रचित 'वसुदेवहिण्डी' की ऐतिहासिक या पौराणिक-धार्मिक कथाओं में लोकतत्त्व का अद्भुत समन्वय पाया जाता है। इस सन्दर्भ में आदि तीर्थंकर ऋषभस्वामी के १. परिषद्-पत्रिका' (वही), पृ. ९७।