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________________ १३४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा मिथक-कथाओं की काल एवं देश की निर्विकल्प चेतना का उदाहरण वेगवतीलम्भ के प्रारम्भ (पृ. २४७) में प्राप्त होता है। विद्याधर-लोक के अरिंजयपुर के प्रवासकाल में एक बार वसुदेव से उनकी मदनवेगा नाम की प्रेयसी रूठ गई। वह, उसे मनाने के उपायों पर सोच रहे थे कि तभी शूर्पणखी विद्याधरी मदनवेगा का छद्मरूप धारण कर वसुदेव के पास आई और उसने महल में कृत्रिम अग्निकाण्ड का भयंकर दृश्य उपस्थित कर दिया और उसी हलचल की स्थिति में वसुदेव को साथ लेकर आकाश में उड़ गई। उस विद्याधरी ने कुछ दूर आकाश में ले जाकर वसुदेव को छोड़ देना चाहा, तभी उन्होंने देखा कि उनका प्रतिद्वन्द्वी मानसवेग उन्हें पकड़ने को अपना हाथ बढ़ा रहा है। ऐसी स्थिति में, छद्म मदनवेगा उन्हें छोड़कर मानसवेग पर प्रहार करने लगी। मानसवेग भाग गया और वसदेव भी चक्कर खाते हए राजगह में जाकर पुआल की टाल पर गिरे । प्रस्तुत मिथक-कथा में विद्याधर-लोक से मर्त्यलोक आने में देश और काल की निर्विकल्प चेतना तो स्पष्ट ही है; केन्द्रीय भावबोध कुतूहल भी पर्याप्त उद्दीप्त है। ___मानवीय पात्र का पशु या पक्षी में रूपान्तरित होकर 'इदम्' की दमित इच्छाओं के उदात्तीकरण का उदात्त रूप चौथे नीलयशालम्भ (पृ. १८१) में प्रतिबिम्बित मिलता है। नीलयशा विद्याधरी शैशव में ही नीलकण्ठ विद्याधर की वाग्दत्ता बन चुकी थी, किन्तु युवती होने पर वह वसुदेव की परिणीता हो गई। तभी से नीलकण्ठ प्रतिक्रिया में रहने लगा। नीलयशा के साथ सुखभोग करते हुए वसुदेव वैताढ्य पर्वत पर दिन बिता रहे थे। उसी समय नीलयशा ने वसुदेव को सलाह दी कि वह विद्याधरों की विद्या सीख लें, अन्यथा विद्याधर उन्हें पराजित कर देंगे। अपनी प्रिया नीलयशा से अनुमत होकर, वसुदेव विद्या सीखने के निमित्त प्रिया के साथ ही वैताढ्य पर्वत पर उतरे और वहाँ के रमणीय प्रदेशों में घूमने लगे। तभी नीलयशा ने मयूरशावक को विचरते हुए देखा। उसके चन्द्रकयुक्त पंख बड़े चिकने चित्र-विचित्र और मनोहर थे। यह वसुदेव के निकट आकर विचरने लगा। उसे देखकर नीलयशा बोली : “आर्यपुत्र ! इस मयूरशावक को पकड़ लीजिए। यह मेरे लिए खिलौना होगा।" वसुदेव मयूरशावक के पीछे लग गये। मयूरशावक कभी घने पेड़ों के बीच से और कभी जंगल-झाड़ से भरी कन्दराओं से होकर बड़ी तेजी से चल रहा था। तब, वसुदेव ने नीलयशा से कहा : “मैं मयूरशावक को पकड़ने से असमर्थ हूँ। यह बड़ी फुरती से अदृश्य हो जाता है। तुम इसे अपने विद्याबल से पकड़ो।” नीलयशा दौड़ी और विद्या के प्रभाव से मयूरशावक की पीठ पर जा बैठी। मयूरशावक उसे अपनी पीठ पर लिये दूर निकल गया और फिर आकाश में उड़ गया। वसुदेव सोचने लगे : “राम मृग के द्वारा छले गये थे और मैं मयूर के द्वारा । निश्चय ही, नीलकण्ठ ने मेरी प्रिया का अपहरण कर लिया !” । ___अन्त में, देश-देशान्तरों का हिण्डन करते हुए वसुदेव को नीलयशा मिल जाती है और इस मिथकीय चेतनावाली कथा का अन्त सुखान्त होता है। इस प्रकार, संघदासगणी की मिथकीय चेतनावाली विद्याधरियों की कथाओं में सद्गुणों का विजय प्रदर्शित किया गया है। वस्तुतः, मिथकीय परीकथाएँ शिशुओं के सहज सुखबोध तथा न्यायबोध की धात्री के समान होती हैं। मिथकीय चेतनावाली परीकथाओं में रत्यात्मक रोमांस के बावजूद नैतिकता का मधुर झीना अवगुण्ठन रहता है, साथ ही उनमें आदिम निर्बाधित साहस और शिष्ट छल-कपट का मिश्रण
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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