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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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त्रिजटा एवं शूर्पणखी या शूर्पणखा – ये दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई हैं। 'पउमचरिय' में 'दशानन' नाम की सार्थकता के सन्दर्भ में कहा गया हैं कि जब रत्नश्रवा ने पहले-पहल अपने पुत्र रावण को देखा, तब शिशु अलौकिक माला पहने हुए था । रत्नों की किरणों से जगमगाती इस माला में पिता को शिशु रावण के और मुख प्रतिबिम्बित दिखाई पड़े, इसीलिए इसका नाम दशमुख (दशानन या दशग्रीव) रख दिया गया, किन्तु 'वसुदेवहिण्डी' में वंशक्रमागत रूप में विंशतिग्रीव का पुत्र दशग्रीव है । 'पउमचरिय' में वर्णन है कि अपने मौसेरे भाई का वैभव देखकर रावण आदि भाई तप करने जाते हैं और विद्याएँ प्राप्त करते हैं; किन्तु 'वसुदेवहिण्डी' में अपने सौतेले भाइयों – सोम, यम आदि के विरोध के कारण रामण के सपरिवार लंकाद्वीप में जा बसने की कथा चित्रित है ।
‘पउमचरिय' में रावण मन्दोदरी तथा अन्य छह हजार कन्याओं से विवाह करता हैं, किन्तु 'वसुदेवहिण्डी' के रामण की सेवा में मय नाम का विद्याधर अपनी पुत्री मन्दोदरी को स्वयं लाकर अर्पित कर देता है । 'पउमचरिय' में, खरदूषण रावण का भाई न होकर किसी अन्य विद्याधर- वंश का राजकुमार है और रावण की बहन चन्द्रनखा से विवाह करता है । किन्तु, 'वसुदेवहिण्डी' में खरदूषण शूर्पणखा का पुत्र है, राम ने स्त्री को अवध्य मानकर शूर्पणखा के केवल नाक-कान काटकर उसे छोड़ दिया है और युद्ध के लिए आये खरदूषण का, राम और लक्ष्मण मिलकर वध कर देते हैं । अन्त में, राम के स्थान पर अष्टम वासुदेव लक्ष्मण ने रामण के द्वारा प्रक्षिप्त चक्र को ही बड़ी निपुणता से वापस भेजकर कुण्डल मुकुट - सहित समण के सिर को छिन्न-भिन्न कर देते हैं और रामण का वह चक्र पुनः लक्ष्मण के पास लौट आता है। 'पउमचरिय' में भी लक्ष्मण ही रावण का वध करते हैं । इस स्थल पर विमलसूरि और संघदासगणी – दोनों ने जैन परम्परा के अनुसार ही अपना वर्णनाग्रह व्यक्त किया है । परम्परा की बाध्यता दोनों के लिए मान्य हुई है ।
विमलसूरि ने सीता को जनक की पुत्री के रूप में चित्रित किया है, किन्तु संघदासगणी ने उसे मय विद्याधर की पुत्री मन्दोदरी की परित्याज्य पुत्री के रूप में उपस्थित किया है । विमलसूरि ने दशरथ की क्रमश: चार रानियों – कौशल्या या अपराजिता, सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा की चर्चा की है, जबकि संघदासगणी ने ब्राह्मण-परम्परा के अनुसार कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा इन तीन रानियों की | ‘पउमचरिय' के अनुसार, शत्रुघ्न सुमित्रा के पुत्र हैं और 'वसुदेवहिण्डी' के अनुसार, भरत र शत्रुघ्न कैकेयी के पुत्र हैं। 'पउमचरिय' में सीता की अग्निपरीक्षा का वर्णन किया गया है। अग्निपरीक्षा में सीता सफल हुई है और एक आर्यिका के निकट जैनदीक्षा लेकर स्वर्ग की अधिकारिणी बनी है । किन्तु 'वसुदेवहिण्डी' में इस प्रसंग की कोई चर्चा नहीं है । इस प्रकार के अनेक प्रसंग 'पउमचरिय' में उपलभ्य हैं, जिनका संघदासगणी की रामकथा से कोई तारतम्य नहीं मिलता । उपर्युक्त कतिपय प्रसंगों के तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट है कि 'पउमचरिय' के कर्त्ता विमलसूरि ने रामकथा का जो चित्रण किया है, उसके बहुत सारे अंश 'वाल्मीकिरामायण' से नितान्त भिन्न हैं, किन्तु संघदासगणी द्वारा चित्रित रामकथा विमलसूरि की रामकथा से सर्वथा भिन्न है । इसलिए, 'पउमचरिय' को यदि 'वसुदेवहिण्डी' का पूर्ववर्त्ती माना जाय, तो भी उसका इसपर कोई भी प्रभाव परिलक्षित नहीं होता ।