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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा शाम्ब ने पूछा: “छाँछ मिलेगी?" 'हाँ', ग्वालिन बोली। इसके बाद 'छाँछ लूँगा' कहकर शाम्ब ने उसका हाथ पकड़ लिया। तभी कृष्ण ने अपना रूप दिखलाया। शाम्ब भागा। फिर, उस दिन कृष्ण के समीप नहीं आया।
दूसरे दिन कृष्ण ने कुलकरों के समक्ष शाम्ब को बुलवाया। वह खैर की कील को नहरनी से छीलते हुए सभा में आया।“शाम्ब ! यह क्या ?" कृष्ण ने पूछा। शाम्ब के स्वर में उद्दण्डता थी : “जो बीती हुई बात छेड़ेगा, उसके मुँह में यह कील डाल दी जायगी।" वासुदेव कृष्ण ने कुलकरों से कहा : “आपलोगों ने सुन लिया न ? कल इसने मुझे पंचगव्य से स्नान करवा दिया, इसी बात को आपसे कहना चहता हूँ, तो यह मेरे मुँह में कील डालने की धमकी देता है। इसलिए, अब द्वारवती में इसका रहना ठीक नहीं। यहाँ से यह निकल जाय।" ___ इसपर कृष्ण के पिता वसुदेव ने कहा : “कृष्ण, इसे क्षमा कर दो। यह विनोदी बालक हमारे कुल का अलंकार है, जैसे ऋषियों में नारद ।" इसपर कृष्ण ने उपालम्भ के स्वर में कहा : “इसे आपने ही उद्दण्ड बनाया है, जो मेरे (पिता के साथ भी खिलवाड़ करता है।” कृष्ण की बात सुनकर कुलकरों ने भी शाम्ब को द्वारवती से निकल जाने का आदेश दिया। और फिर, कृष्ण ने शाम्ब से कहा : “जब मैं और सत्यभामा निहोरा करके तुम्हें बुलायें, तभी द्वारवती आना।"
कृष्ण की आज्ञा मानकर शाम्ब ने वसुदेव आदि पितामहों को प्रणाम किया और प्रद्युम्न से प्रज्ञप्तिविद्या प्राप्त कर सौराष्ट्र देश चला गया। एक दिन प्रज्ञप्ति ने शाम्ब को सूचना दी कि भानु का विवाह एक सौ आठ कन्याओं के साथ हो रहा है। वह द्वारवती लौट आया और अपने छल-बल से, भानु को दी जानेवाली एक सौ आठ कन्याओं को स्वयं उसने हथिया लिया। इस उपलक्ष्य में कृष्ण ने उसे पचास करोड़ का सोना, वस्त्राभरण, शयन, आसन, यान, वाहन, बरतन तथा परिचारिकाएँ दीं। उसके बाद शाम्ब महल में बैठा, नाट्यसंगीत का आनन्द लेता हुआ दौगुन्दुक देव की भाँति निरुद्विग्न भाव से मानुष्य भोगों का उपभोग करने लगा। ___ इस प्रकार, वसुदेवहिण्डी' के पीठिका' और 'मुख' प्रकरण सम्पूर्णतया कृष्णकथा से अनुबंद्ध हैं। 'प्रतिमुख' प्रकरण में भी कृष्ण के दर्शन होते हैं । वसुदेव जिस समय अपना भ्रमण-वृत्तान्त सुना रहे हैं, उस समय कृष्ण को भी आमन्त्रित किया गया है, और वह भ्रमण-वृत्तान्त के श्रोताओं में सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त असमाप्त 'वसुदेवहिण्डी' की समाप्ति में, अन्तिम २८वें देवकीलम्भ में कृष्णकथा का लघ्वंश मिलता है, जिसमें कृष्ण के जन्म लेने और गोकुल में बचपन बिताने की कथा तथा कंस की पुत्री सत्यभामा के साथ विवाह करने के क्रम में धनुष तोड़ने की बात बहुत ही संक्षिप्त रूप में लिखी गई है।
संघदासगणी ने कृष्णजन्म की कथा को, वैष्णव-परम्परा का अन्धानुकरण न करके बिलकुल नये परिवेश में उपन्यस्त किया है। कृष्ण का जन्म, वर्षाकाल में, उस समय हुआ, जिस समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र से युक्त था। कंस उनका शत्रु अवश्य था, किन्तु उन्होंने उसे मार डालने की अपेक्षा उसकी पुत्री सत्यभामा से विवाह कर लिया। कंस ने पूर्वभवजनित विद्वेष के कारण अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बना लिया था।
कंस की पूर्वभव-कथा के संयोजन में कथाकार के रचनाकौशल की विचित्रता विस्मित कर देती है। पूर्वभव में कंस बालतपस्वी (अज्ञानपूर्वक तप करनेवाला) था। वह एक महीने का उपवास (मास-क्षपण) करके पारण के निमित्त मथुरापुरी में आया। उग्रसेन ने उसे पारण के लिए अपने घर