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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
प्रद्युम्न और जाम्बवती के पुत्र शाम्ब के पूर्वभव की अद्भुत और रोचक कथा सुनाई और बताया कि सम्प्रति शिशु प्रद्युम्न वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के पश्चिम दिग्भाग में स्थित मेघकूट नगर विद्याधर- दम्पति कालसंवर और कनकमाला के आश्रम में पल रहा है। साथ ही, यह भी निर्देश किया कि धूमकेतु देव पूर्वजन्म के वैर का स्मरण करके ही अपने प्रतिद्वन्द्वी मधु (रुक्मिणी की कोख से उत्पन्न कृष्णपुत्र प्रद्युम्न) को उत्पन्न होते ही चुरा लिया और भूतरमण अटवी की शिला पर सूखने के लिए छोड़ दिया, जिसे विद्याधर- मिथुन (यथोक्त) अपने घर ले गये ।
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सीमन्धरस्वामी से कृष्णपुत्र के पूर्वभव की कथा सुनकर नारद का संशय मिट गया । वह रुक्मिणी के समीप लौट आये और उन्होंने उससे कहा कि “सीमन्धरस्वामी के निर्देशानुसार, तुम्हारा पुत्र जीवित है और विद्याधर के घर में संवर्द्धित हो रहा है । यथासमय पुत्र से होगा ।" यह कहकर नारदजी आकाशमार्ग से चले गये ।
तुम्हारा मिलन
रुक्मिणी के बाद सत्यभामा ने जिस पुत्र का प्रसव किया, उसका नाम भानु रखा गया । भानु जब युवा हो गया, तब अपने वचन के अनुसार राजा दुर्योधन ने अपनी पुत्री के साथ उसके विवाह का आयोजन किया । शिशु अवस्था में ही पुत्र के अपहरण के कारणवश रुक्मिणी अपने को पुत्रवती प्रमाणित नहीं कर पा रही थी, इसलिए सत्यभामा ने ही अपने को पहले पुत्रवती होने का अधिकार प्रस्तुत किया था। फलतः दुर्योधन उसी के पुत्र भानु के साथ अपनी पुत्री का विवाह रचा रहा था। ऐसी स्थिति में रुक्मिणी ने व्याकुल होकर नारद से शीघ्र ही पुत्र प्रद्युम्न को लाकर दिखलाने का आग्रह किया ।
नारद आकाशमार्ग से उड़कर विद्याधरलोक स्थित मेघकूट पहुँचे । वहाँ उन्होंने प्रद्युम्न से बताया कि जब तुम गर्भ में थे, तब तुम्हारी माता रुक्मिणी के साथ सपत्नीत्व के कारण सत्यभामा ने शर्त रखी कि जो पहले पुत्र पैदा करेगी, उसके पुत्र के विवाह में दूसरे को केश मुड़वाना पड़ेगा । जन्म लेते ही तुम्हारा अपहरण कर लिया गया, इस बात पर सत्यभामा विश्वास नहीं करती। वह समझती है कि रुक्मिणी को पुत्र पैदा ही नहीं हुआ। इसलिए, तुम्हें आज ही चलकर अपनी माँ की प्रतिष्ठा रखनी चाहिए ।
इसके बाद नारद ने दिव्य सामर्थ्य से विमान उत्पन्न किया और उसी विमान पर चढ़कर दोनों वहाँ से चुपके चल पड़े। विमान यात्रा के क्रम में नारद ने प्रद्युम्न को सम्पूर्ण भारत के नगर, भवन, आश्रम, जनपद आदि का परिदर्शन कराया। रास्ते में, खदिराटवी में, सैन्य शिविर देखकर प्रद्युम्न ने जिज्ञासा की । नारद ने बताया कि सत्यभामा के पुत्र भानु के विवाह में तुम्हारी माँ का केश मुड़वाया जायगा, उसी के लिए यह शिविर आयोजित है । तब क्रुद्ध होकर प्रद्युम्न ने कहा : "देखिए, मैं इनकी पूजा करता हूँ ।"
तदनन्तर, प्रद्युम्न ने, जिसे विद्याधरलोक में रहते समय अपनी पालिका माता कनकमाला विद्याधरी से प्रज्ञप्ति विद्या प्राप्त हुई थी, अपने विद्याबल से उक्त विवाह - शिविर में अनेक प्रकार की भयावह और लोमहर्षक विकृतियाँ उत्पन्न कीं । विवाहोत्सव ध्वस्त हो गया। इसी क्रम में प्रद्युम्न ने भानु को भी अनेक प्रकार से तंग - तबाह किया । यहाँतक कि कृष्ण भी प्रद्युम्न की चपेट में आ गये ।