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________________ वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ 'कथोत्पत्ति' अधिकार के अन्तर्गत जो कथाएँ आई हैं, उन्हें इन पर्यायों में उपस्थित किया गया है : कथानक (कहाणय), कथा (कहा), दृष्टान्त (दिटुंत), ज्ञात (णाय), उदन्त और आख्यानक (अक्खाणय)। ‘णाय' का अर्थ 'उदाहरण' या 'दृष्टान्त' भी है । प्रसिद्ध जैनागम ‘णायाधम्मकहाओ' का नामकरण उसकी दृष्टान्तबहुलता के कारण ही हुआ, ऐसी सम्भावना है। णायाधम्मकहाओ, अर्थात् दृष्टान्तबहुल धर्मकथाएँ । बुधस्वामी ने ‘णाय' या दृष्टान्त के लिए 'ज्ञापक' शब्द का प्रयोग किया है : 'ज्ञापकं चास्य पक्षस्य श्रूयतां यन्मया श्रुतम्।' (सर्ग २१. श्लो. ५५) इस अधिकार के आगे 'धम्मिल्लचरित' में कथा का एक अन्य पर्याय 'आहरण' भी मिलता है। 'शरीर' अधिकार में सगर-कथा को 'सगर-सम्बन्ध' कहा गया है । इसलिए, संघदासगणी ने 'सम्बन्ध' शब्द का प्रयोग कथा के एक पर्याय के रूप में ही किया है । पूर्वोक्त 'कथोत्पत्ति' अधिकार में भी प्रसन्नचन्द्र और वल्कलचीरी का सम्बन्ध (कथा) है । पाँचवें 'सोमश्रीलम्भ' में भी नारद, पर्वतक और वसु की कथा को ‘सम्बन्ध' शब्द से संज्ञित किया गया है। सोलहवें 'बालचन्द्रालम्भ' में विद्युदंष्ट्र विद्याधर की 'कथा' की संज्ञा ‘सम्बन्ध' ही है। इस प्रकार, अन्यत्र भी संघदासगणी ने 'कथा' के पर्याय के रूप में 'सम्बन्ध' शब्द का भूयशः प्रयोग किया है। साथ ही, उनके द्वारा प्रयुक्त 'परिचय' और 'उदाहरण' शब्द भी कथा के ही समानार्थी हैं । इस प्रकार, 'शरीर' अधिकार में 'कथा' के उपर्युक्त सभी पर्यायवाची शब्द कथाकार द्वारा बार-बार प्रयुक्त हुए हैं। 'कथाओं' के अतिरिक्त 'आत्मकथाएँ' भी इस कथाकृति में हैं। यों तो 'वसुदेवहिण्डी' में चित्रित सम्पूर्ण 'वसुदेवचरित' ही आत्मकथा-शैली में उपन्यस्त है । किन्तु, इस बृहत् आत्मकथा में अनेक लघु आत्मकथाएँ भी समाहित हैं। जैसे : 'अगडदत्तमुणिणो अप्पकहा', 'उप्पत्रोहिणाणिणो मुणिणो अप्पकहा', 'चारुदत्तस्स अप्पकहा', 'मिहुणित्थियाऽऽवेइया पुव्वभविया अत्तकहा', 'ललियंगयदेवकहिया पुव्वभविया अत्तकहा', 'सिरिमइनिवेइया निण्णामियाभवसंबद्धा अत्तकहा', 'चित्तवेगाअत्तकहा', 'वेगवतीए अप्पकहा' और 'विमलाभा-सुप्पभाणं अज्जाणं अत्तकहा' । इस प्रकार, ये नौ आत्मकथाएँ भी अन्यान्य उपकथाओं की भाँति मूल आत्मकथा के पल्लवन में सहायक हुई हैं। संघदासगणी द्वारा प्रयुक्त कथा के सभी पर्यायवाची शब्द प्रायः समानार्थी हैं । यद्यपि, सूक्ष्मता से अनुशीलन करने पर इनमें विशेष अन्तर परिलक्षित होता है । 'प्राकृतशब्दमहार्णव' से भी कथा की विभिन्न संज्ञाओं में पार्थक्य का संकेत मिलता है । 'महार्णव' के अनुसार, 'कथानक' यदि 'कथा' या 'वार्ता' है, तो 'दृष्टान्त' उदाहरण-रूप में कही गई कथा है। 'ज्ञात' (णाय) को यदि उदाहरण या दृष्टान्त कहा गया है, तो 'उदन्त' को समाचार या वृत्तान्त । 'आख्यानक' यदि कहानी या वार्ता है, तो 'सम्बन्ध' कथाप्रसंग है। इस प्रकार, संघदासगणी द्वारा प्रयुक्त 'कथा' की सभी संज्ञाएँ स्वरूपतः एक दूसरे का पर्याय-सामान्य होते हुए भी अर्थतः विशिष्ट हैं। सम्पूर्ण 'वसुदेवहिण्डी' मूलतः आख्यानक-ग्रन्थ या कथाग्रन्थ या उपाख्यान-ग्रन्थ ही है। विश्वनाथ कविराज ने कथा उसे माना है, जिसमें सरस वस्तु को गद्य में गुम्फित किया गया हो; 'कथायां सरसं वस्तु गद्यैरेव विनिर्मितम् । (साहित्यदर्पण, ६.३३२) विश्वनाथ ने आख्यान आदि को कथा और आख्यायिका में ही अन्तर्भुक्त ('आख्यायिका कथावत्स्यात्) माना है, इसलिए उनकी १.कथापर्याय-विषयक विशेष विवरण के लिए पाँचवें अध्ययन का 'साहित्यिक सौन्दर्य के तत्त्व' शीर्षक प्रकरण द्रष्टव्य।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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