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________________ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना ३० होता है । मुख्य रूप से महाकाव्य रामायण की शैली से प्रभावित होकर रचे गये, अत: कुछ शताब्दियों में महाकाव्य के रूप-शिल्प की एक ही पद्धति पुन: पुन: प्रयुक्त होने के कारण रूढ़ होती गयी।' पाँचवीं शती में भामह तथा छठी शती में दण्डी द्वारा दिये गये महाकाव्य-लक्षणों से इस कथन की पुष्टि होती है । कालान्तर में काव्यशास्त्रियों ने महाकाव्य को रूपशिल्प सम्बन्धी नियमों से इस प्रकार बाँध दिया कि स्वछन्द पद्धति से महाकाव्य की रचना असम्भवप्राय हो गयी । एवंविध, काव्यशास्त्रों के नियमों से नियमित महाकाव्य ही शास्त्रीय महाकाव्य (Classical Epic) कहा जाता है I राजशेखर काव्यमीमांसा मे कवि के प्रकारों में शास्त्रकवि नामक एक प्रकार का उल्लेख करते हैं। उनके अनुसार यह शास्त्रकवि तीन प्रकार का होता है— (१) शास्त्र का निर्माण करने वाला, (२) शास्त्र में काव्य का समावेश करने वाला एवं (३) काव्य में शास्त्र का समावेश करने वाला । २ काव्यशास्त्रीय प्राच्य - परम्पराओं और आधुनिक महाकाव्य सम्बन्धी मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में शास्त्रीय महाकाव्यों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है (क) रससिद्ध या रीतिमुक्त (ख) रुढ़िबद्ध या रीतिबद्ध (ग) शास्त्रकाव्य और सन्धानकाव्य (क) रससिद्ध या रीतिमुक्त शास्त्रीय महाकाव्य जिन महाकाव्यों की रचना रीतिग्रन्थों के निर्माण से पूर्व हुई है अथवा जो रीतिबद्ध युग में भी काव्यशास्त्र के विधान से अनुशासित होकर नहीं लिखे गये या यह कहा जा सकता है कि जो महाकाव्य काव्यशास्त्रों की रचना में आदर्श मानदण्ड के रूप में स्वीकृत किये गये, उन्हें रीतिमुक्त अथवा रससिद्ध महाकाव्यों का नाम १. “सन् ईस्वी के आरम्भ के समय निश्चित रूप से संस्कृत की काव्य-शैली निखर चुकी थी,काव्य सम्बन्धी रुढ़ियाँ बन चुकी थीं और कथानक में भी मोहन गुण और मादक प्रवृत्ति ले आने वाले काव्यगत अभिप्राय प्रतिष्ठित हो चुके थे”, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी: संस्कृत के महाकाव्यों की परम्परा (आलोचना, जुलाई १९५२), पृ. ९ “तत्र त्रिधा शास्त्रकविः। य शास्त्रं विधत्ते, यश्च शास्त्रे काव्यं संविधत्ते, योऽपि काव्ये शास्त्रार्थं निधत्ते ।” काव्यमीमांसा, चौखम्बा संस्करण, अध्याय ५, पृ.४४
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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