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________________ २६० सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना थे। इस प्रकार तत्कालीन सामन्तवादी नारी-मूल्यों के परिणामस्वरूप मदिरापान और नारी-सम्भोग उच्चवर्ग की विलास-क्रीडा बन गये थे। काम-कला नैपुण्य युगीन समाज-जीवन में यौन सम्बन्धों के सन्दर्भ में भी द्विसन्धान से कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त होती हैं । उस समय रतिक्रीडा सम्बन्धी अनेक प्रकार की कामशास्त्रीय गतिविधियाँ प्रचलित थीं। स्त्रियाँ कामकला में विशेष रूप से दक्ष होती थीं। द्विसन्धान के वर्णन में आलिङ्गन की एक विशेष मुद्रा का चित्रण हुआ है, जिसमें नायिका ने अपने चूचुक को नायक के कन्धे पर रखकर उसका आलिङ्गन किया है । इस आलिङ्गन के समय अर्धचुम्बन का भी विधान किया गया है । इसी प्रकार एक संभोग मुद्रा का भी यथार्थ उल्लेख है, जिसमें कान्ता ने मुख में मुख, कन्धे पर कन्धा और जंघा से जंघा मिलाकर दत्तचित होकर संभोग क्रिया के अतिरेक का भोग किया। वेश्या व नर्तकी समाज में वेश्यावृत्ति का विशेष प्रचलन था। द्विसन्धान के अनुसार वेश्याएं कापटिक रूप से युवकों की सेवा कर उन्हें क्षणभर में ही ठग लेती थीं। इसी प्रकार नर्तकियाँ भी नृत्य आदि के द्वारा जीविकोपार्जन करती थीं। वेश्याओं अथवा नर्तकियों के लीलागृह चमकीले शीशे से निर्मित होते थे ।५ मङ्गल अवसरों पर इनके राजभवनों में जाकर नृत्य-प्रदर्शन के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं।६ सौन्दर्य प्रसाधन द्विसन्धान में आये वर्णनों से यह प्रतीत होता है कि उस युग में स्त्रियाँ सौन्दर्य प्रसाधनों की बहुत शौकीन रही थीं। वे चन्दन, सुगन्धित पदार्थों का अपने शरीर पर लेप करती थीं। स्त्रियों द्वारा शरीर पर शालिचूर्ण का लेप करने के वर्णन भी १. . द्विस,१७.७४ २. वही,८.४२ ३. वही,१७.७० ४. वही,१.४८ ५. वही,१.३० ६. वही,४.२२ ७. वही,१५.१
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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