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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन
२५९ समवर्ती दूसरे मानदण्डों का स्थान भी नारी सौन्दर्य वर्णन को दिया जाने लगा था। समसामयिक परिस्थितियों मे सामन्त लोग रूपवती स्त्री को केवल राजप्रासादों की शोभा समझने लगे थे। वे साधारण जनमानस में सुन्दर स्त्री को देखकर ईर्ष्यालु हो जाते थे और कभी-कभी उसका अपहरण करके अपने महलों की शोभा भी बना लेते थे। द्विसन्धान में आये एक उल्लेख के अनुसार उस समय छोटे राजा बड़े राजाओं को प्रसन्न करने अथवा उनसे सन्धि करने के लिये अपनी बहनें अथवा पुत्रियाँ विवाह के लिये उपहार-स्वरूप भेंट करने लगे थे। स्त्रीभोगविलास और मदिरापान
तत्कालीन सामन्तवादी भोग-विलास के मूल्यों ने दम्पतियों की कामविलासात्मक चेष्टाओं को भी प्रभावित कर लिया था। द्विसन्धान-महाकाव्य में दम्पतियों के द्वारा मद्यपान कर कामक्रीडाओं में प्रवृत्त होने का अत्यन्त स्पष्ट चित्रण हुआ है ।५ मदिरा-पान से कामक्रीडा के क्षण अत्यन्त मोहक हो जाते थे।६ मद्यपान करने के उपरान्त वधुएं लाल तथा पसीने से आर्द्र भृकुटि वाली हो जाती थीं। मधुपान से मानवती नायिकाएं उन्मत्त होकर अनर्गल आलाप करने लगती थीं। मदिरापान से मत्त होकर कामीजन पूर्ण आवेश से कामोपभोग करते थे, यहाँ तक कि उन्हें दन्तक्षत अथवा नखक्षत की चिन्ता भी नहीं रहती थी। मधुपान से प्रियतमाएं इतनी विह्वल हो जाती थीं, कि मुख तथा कान का अन्तर भूलकर प्रेमी के मुख में गुनगुनाती-सी कुछ-कुछ ध्वनि करने लगती थीं।१° रतिक्रीडा के आवेग में युगलों को शरीर की सुध भी नहीं रहती थी, वे लज्जाहीन होकर निर्वस्त्र हो जाते
१. द्विस.,१६७० २. वही,७.८६ ३. वही,७९० ४. वही,९५२ ५. वही,१७.५५,७३ ६. वही,१७.५६ ७. वही,१७.५८ ८. वही,१७.५९ ९. वही,१७.६० १०. वही,१७.६४