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सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
(२) आख्यानक नृत्य-गीत (Ballad Dance )
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सामूहिक नृत्य-गीतों से आख्यानक नृत्य गीतों को स्वर मिला । नृतत्त्वशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों का यह अनुमान है कि उसमें सामूहिक नृत्यों के अवसर पर कुछ थोड़े से, बहुधा अर्थहीन शब्दों की आवृत्ति, स्वरालाप, सम्बोधन और विस्मयादिबोधक शब्द प्रयुक्त होते थे । गाने के साथ ही वे लोग पादसंचालन भी करते थे, जिसमें सामंजस्यपूर्ण गति होती थी । यह पादसंचालन की गति ही उनके गीत के स्वर नियत करती थी, जिससे गीत में भी लय और ताल की योजना स्वत: हो जाती थी ।' इस प्रकार सामूहिक नृत्यगीत से ही नृत्य, संगीत और काव्य का विकास हुआ । शनै: शनै: चेतना के विकास और धार्मिक या अन्य प्रकार की प्रवृत्तियों के उदय के साथ गीत में सार्थक शब्दों का प्रयोग भी होने लगा तथा एक गीत में किसी एक भावना, प्रार्थना, घटना या कथा का वर्णन किया जाने लगा । कालान्तर में नृत्यगीत के साथ भावनापरक वर्णनों के संयोजन से गीति (Lyric), प्रार्थनापरक वर्णनों के संयोजन से स्तोत्र (Hymn ) और घटना या कथा सम्बन्धी वर्णनों के संयोजन से आख्यानक नृत्य गीत विकसित हुए। कालान्तर में ये काव्यरूप सामूहिक नृत्यगीत से पूर्णतः स्वतन्त्र हो गये, यद्यपि नृत्य अथवा संगीत से उनका सम्बन्ध किसी-न-किसी रूप में बना रहा । २
फेरो द्वीप में सतरहवीं शती तक नृत्य के साथ आख्यानक काव्य और वीरगीति का गान होता था । ३ आइसलैण्ड में नृत्य के साथ प्राचीन काल से आख्यानक काव्य का गान होता आ रहा है। इंग्लैण्ड में भी राबिनहुड जैसी वीरगाथाओं का नृत्य में उपयोग होता था । 'भारत के जौनपुर जिले मे आख्यानक नृत्य-गीत शैली
१.
"To this God and assembled multitudes sang a hymn, at first merely a chorus, exclamation and incoherent chant full of repetitions. As they sang, they kept time with the foot in a solemn dance which was inseparable from the chant itself and governed the words." Gummere, F.B. : A Handbook of Poetics. p. 9.
२. हिन्दी साहित्य कोश, भाग १, बनारस, सं. २०१५, पृ.४२२-२३
३.
Ker, W.P. : Form and Style in Poetry, p.10. ४. वही, p.9,10
५.
The Encylopaedia Americana, Vol. III, 1958, p. 95.