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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना बन्ध की आकृति में सौन्दर्य लाया जाता है। तीन पाद नेमियों (अरों) के पठन से तथा चौथा नेमियों के प्रथमाक्षरों को समन्वित करते हुए पूर्ण होता है । द्विसन्धान में निम्नलिखित पद्य के माध्यम से षडर-चक्र का सफल विन्यास हुआ है
चम्वाजिस्थिरया धरानमननिश्चिन्तस्थितोऽनश्चरन् प्रज्ञानस्थिति कर्मजातमवनिस्वामी सुखानां कृते। मत्वामा सचिवैरिहत्यमवसि स्थानं सतामर्चितौ तौ जैनो चरणौ प्रजाशमकृतौ रत्यास्तुतेन्द्रस्तुतौ ॥२
तृतीय
द्वितीय
चतुर्थ
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प्रथम
पाद
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१. अलं.चिन्ता.,२.१७९ २. द्विस.,१८.१४५