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रस-परिपाक
१२५ 'द्विसन्धान-महाकाव्य' में दोनों ही प्रकार के 'शृङ्गार' का विवेचन इस प्रकार हुआ
(१) सम्भोग शृङ्गार
समान मनोदशा वाले अत्यन्त प्रसन्न प्रेमी एवं प्रेमिका जो कुछ दर्शन, भाषण आदि करते हैं, वह सब सम्भोग शृङ्गार कहा गया है । धनञ्जय कृत द्विसन्धानमहाकाव्य में सम्भोग शृङ्गार का भी चरमोत्कर्ष प्रदर्शित किया गया है । पन्दरहवें सर्ग में प्रियाओं के साथ वन-विहार व जल-विहार तथा सतरहवें सर्ग में सम्भोग-वर्णन आदि प्रसंगों में सम्भोग-शृङ्गार का पूर्ण परिपाक प्राप्त होता है। द्विसन्धान-महाकाव्य में सम्भोग शृङ्गार के समस्त रूपों-सन्दर्शन, स्पर्श, वस्त्राहरण, चुम्बन, आलिङ्गन, अधरक्षत, नखक्षत, दोलाक्रीडा, पुष्पावचय, सलिल-क्रीडा, चन्द्रोदय, कामक्रीडा का पारम्परिक वर्णन हुआ है । इस महाकाव्य में मधुपान, जो जैन परम्परा के अनुसार एक व्यसन है, का भी विशद वर्णन प्राप्त होता है। सन्दर्शन
निश्वासमुष्णं वचनं निरुद्धं म्लानं मुखाब्जं हृदयं सकम्पम्।
श्रमादिवाङ्ग पुलकप्रसङ्ग पदे पदेऽसौ बिभरांबभूव ॥२
प्रस्तुत उदाहरण में उस समय का वर्णन है, जब सूर्पणखा अथवा कीचक लक्ष्मण अथवा द्रौपदी को देखते हैं । यहाँ रति स्थायी भाव है । आलम्बन विभाव लक्ष्मण/द्रौपदी है तथा आश्रय सूर्पणखा/कीचक है । लक्ष्मण/द्रौपदी का लोकोत्तर सौन्दर्य उद्दीपन विभाव है। सम्मोहन, हर्ष, मद आदि व्यभिचारी भाव हैं। ऊष्ण श्वासों का निकलना, वचनों का गद्गद् अथवा असम्बद्ध-सा निकला, मुखकमल का मुरझा जाना, हृदय धड़कना आदि अनुभाव हैं । सम्मोहन के कारण शरीर में होने वाला रोमाञ्च, स्वेद आदि सात्विक भाव हैं । यहाँ पर सूर्पणखा/कीचक का सम्भोग अभिलाषत्व व्यंजित हो रहा है। लक्ष्मण/द्रौपदी को देखते ही उसके हृदय में सम्भोगेच्छा बलवती हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप ऊष्ण श्वासें निकलना, वचनों का गद्गद् हो जाना आदि लक्षण प्रकट हो जाते हैं।
१. का.रु.,१३.१ २. द्विस,५.८