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रस-परिपाक
११७ रावण/जरासन्ध का वर्णन करने में कवि ने अपनी अद्वितीय तथा विलक्षण कल्पना शक्ति का परिचय दिया है।
यहाँ उत्साह' स्थायी भाव है । शत्रुसमूह आलम्बन तथा दशमुख/जरासन्ध आश्रय है ।पृथ्वी के शत्रुसमूह को यम के दाँतों के बीच में झोंक देना उद्दीपन विभाव है। राजाओं का नतमस्तक होना, संग्राम में शव-नर्तन के लिए सूत्रधार बनना आदि अनुभाव हैं। गर्व, आवेग, हर्ष आदि व्यभिचारी भाव हैं, जिनसे परिपुष्ट होकर शौर्य जनित 'उत्साह' का युद्ववीर रूप में परिपाक हुआ है । युद्धगत पराक्रम-वर्णन
द्विसन्धान-महाकाव्य में शौर्य-वर्णनों की भाँति युद्धगत पराक्रम-वर्णनों द्वारा भी वीर रस की अद्भुत अभिव्यक्ति हुई है । यथा
स सागरावर्तधनुर्धरो नरो नभ: सदां कामविमानसंहतिम् ।
अयत्नसंक्लृप्तगवाक्षपद्धतिं चकार शातैर्विशिखैर्विहायसि ॥१
प्रस्तुत प्रसङ्ग में खरदूषण के साथ युद्धरत लक्ष्मण तथा दुर्योधन के साथ अर्जुन के अप्रतिम पराक्रम का चित्रण किया गया है । रामायण के प्रसङ्ग में 'सगर राजा की वंश-परम्परा में उत्पन्न उस धनुषधारी लक्ष्मण ने आकाशचारी खर-दूषण आदि विद्याधरों के इच्छामात्र से चलने वाले विमानों को आकाश में ही रहने पर भी तीक्ष्ण बाणों के द्वारा ऐसा छेद दिया था कि वे स्वाभाविक खिड़कियों से पूर्ण के समान लगते थे' । महाभारत-पक्ष में इसका अर्थ है-'समुद्र की भँवर के समान विशाल तथा वारुण धनुष के धारक उस अर्जुन ने विशिष्ट लौह से बने शस्त्रों की प्रयोग-स्थली युद्धभूमि में अपने प्रखर बाणों की वर्षा से थलचर कीचकादि के निमित्त से घेरी गयी सर्वथा बेप्रमाण गायों के समूह के लिये बिना किसी प्रयत्न के निकल भागने योग्य मार्ग बना दिया था'।
यहाँ खर-दूषण/दुर्योधन की पराजय के व्याज से लक्ष्मण/अर्जुन के युद्धगत पराक्रम का कुशलतापूर्वक चित्रण किया गया है । इसमें 'उत्साह' स्थायी भाव है। खर-दूषण/दुर्योधनादि आलम्बन तथा लक्ष्मण/अर्जुन आश्रय हैं। शत्रुपक्ष के विमान या गायों का घेरा उद्दीपन है । विमानों में तीक्ष्ण-बाणों से छेद होना अथवा
१. द्विस.,६:२३