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द्विसन्धान-महाकाव्य का सन्धानात्मक शिल्प-विधान (क) प्रकरण-समानता (प्रकरणैक्येन)
सन्धान-काव्य की रचना के लिये दो कथाओं में प्रकरणों की एकता होना आवश्यक है । धनञ्जय ने रामायण तथा महाभारत से कुशलतापूर्वक समान कथाप्रसंगों का चयन किया है, फलत: दोनों कथाओं का समानान्तर रूप से विन्यास करना सम्भव हो पाया है । जिन प्रसंगों में कवि समन्वय स्थापित नहीं कर पाया है, उनका महाकाव्य में बलात् ग्रथन नहीं किया गया है। किन्तु , कवि द्वारा जैन-धर्म में आस्था होने के कारण कहीं-कहीं जैन-मत-सम्मत परिवर्तन कर कथा-प्रसंगों में संगति स्थापित की गयी है । उदाहरणत: लक्ष्मण तथा कृष्ण द्वारा कोटिशिला का उद्धरण । राम द्वारा बालि-वध प्रसंग का भीम के स्थान पर अर्जुन द्वारा जरासंध की पराजय के प्रसंग से सामञ्जस्य स्थापित किया गया है । अस्तु,द्विसन्धान-महाकाव्य में प्रयुक्त कतिपय प्रकरणैक्य के उल्लेखनीय प्रसंग इस प्रकार हैं
राम-जन्म व युधिष्ठिर-जन्म (३. ११), भरत-जन्म तथा भीम-अर्जुन-जन्म (३. २८) लक्ष्मण-जन्म व नकुल-जन्म (३. २९), शत्रुघ्न-जन्म एवं सहदेव-जन्म (३. ३०), राम-विवाह तथा युधिष्ठिर-विवाह (३. २६), रामादि द्वारा वन-गमन तथा युधिष्ठिर आदि द्वारा वन-गमन (४. ३६), सूर्पणखा की लक्ष्मण पर कामासक्ति तथा कीचक की द्रौपदी पर कामासक्ति का वर्णन (५.७), खर-दूषण का राम आदि से युद्ध तथा कौरव-पाण्डव युद्ध (६.१-३५), खर-दूषण वध व कीचक वध (६.३६), लंका-वैभव-वर्णन एवं द्वारका-वैभव-वर्णन(८.२५), रामदूत लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद तथा जरासंधदूत पुरुषोत्तम-श्रीकृष्ण संवाद (सर्ग १०), लक्ष्मण द्वारा कोटि-शिला-उद्धरण व श्रीकृष्ण द्वारा कोटि-शिला-उद्धरण(१२. ३९), रामदूत हनुमान-रावण संवाद तथा श्रीकृष्णदूत श्रीशैल-जरासंध संवाद (१३. १५), राम-रावण युद्ध तथा श्रीकृष्ण-जरासंध युद्ध (सर्ग १६), लक्ष्मण पर शक्ति-प्रहार एवं श्रीकृष्ण पर शक्ति-प्रहार (१७.१६-१७), रावण-वध तथा जरासन्ध वध (१८.९८-९९), विभीषण को राज्य-प्राप्ति तथा युधिष्ठिर आदि को राज्य-प्राप्ति (१९.१०९) तथा राम का राज्याभिषेक व कृष्ण का राज्याभिषेक (१८.१३३)। (ख) विशेषण-विशेष्यता (विशेषण-विशेष्ययो:)
सन्धान-विधि की द्वितीय विशेषता यह है कि काव्य में प्रयुक्त कतिपय शब्द दोनों कथानकों के सन्दर्भ में परस्पर विशेषण-विशेष्य भाव से नियोजित होते हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य में विशेषण-विशेष्यभाव से शब्दों का नियोजन इस प्रकार