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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]
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तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्ख, . निव्वत्तई जस्स करण दुक्ख ॥ १७॥ एमेव भावम्मि गओ पओसं,
. उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म,
जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥८॥ भावे विरत्तोमणुमो विसोगो,
. एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो,
जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥६॥ एविन्दियत्था य मणस्स अत्था,
दुक्खस्स हेमणुयस्स रागिणो। ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्ख,
न वीयरागस्ल करेन्ति किंचि॥१००॥ न कामभोगा समयं उवेन्ति,
न यावि भोगा विगई उन्ति । जे तप्पोसी य परिग्गही य,
सो तेसु मोहा विगई उवेइ ॥१०१ ।। कोहं च मारवं च तहेव माय, .. . लोहं दुगुच्छं अरई रई च । हासं भयं सोगपुमिथिवेय,
___ नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥ १०२॥ श्रावजई एवमणेगवे, ---
. एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन्ने य एयप्पभवे -बिसेसे. ....... कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से ॥१०३॥