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[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
एए चेव उभावे, उवइट्ठे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व, उवपसरुइ त्ति नायव्व ॥ १६ ॥ रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयतो, सो खलु आणारुई नामं ॥ २० ॥ जो सुत्तम हिज्जन्तो सुएण श्रोगाहइ उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण वा, सो सुन्तरुइ त्ति नायव्वो ।। २१ ।। एगेण अगाइ, पयाइ जो पसरह उ सम्मत्त । उदव्य तेल्ल बिन्दू, सो बीयरुइ त्ति नायव्वो ॥ २२ ॥ सो होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण श्रत्थओ दिहं । एक्कारसअंगाई, पइररागं दिट्ठवाओ य || २३ ॥ दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमा रोहि जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयवीही हिं य, दित्थाररुइ त्ति नायव्वो || २४ ॥ दंसणनाराचरिते, तबविणए सव्वसमिद्दगुत्तीसु । जो किरियाभावरुई, सो खलु किरियारुई नाम || २५ | अभिग्ग हिय कुदिट्ठी, संखेव त्ति होइ नायव्वो । अविसार पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥ जो अस्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहद्द जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्व ॥ २७ ॥ परमस्थसंथवो वा, सुदिपरमत्थसेवणा वा षि । वावन्नकुदंसणवज्जा, य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २८ ॥ नत्थि चरितं सम्मत्तविहां, दंसणे उ भइयव्वं । सम्प्रत्तचरित्ताई, जुगधं पुत्र्वं व सम्मत्तं ॥ २६ ॥ नाइस णिस्स नारंग,
नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो,
नत्थि मोक्खस्स निव्वाणं ॥ ३० ॥