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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]
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न सोरोहो सपरियणो सबन्धवो,
___ धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ॥५॥ ऊससियरोमकूवो,
. काऊण य पयाहिणं । अभिवन्दिऊण सिरसा,
अइयाओ. नराहिवो ॥ ५९ ।। .." इयरो वि गुणसमिद्धो, . तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विष्पमुको,
विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥६०॥ त्ति बेमि ॥
|| महानियंठिज्ज समत्तं ।। ॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइमं अज्झयणं । चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवो, सीसे सो उ महप्पणो !। १ ॥ निग्गन्थे पावयणे, सावए से वि कोविए। पोएण वरहरन्ते, पिहुण्ड नगरमागए ॥ २ ॥ पिहुण्डे ववहरन्तस्त, वाणिओ देइ धूया। तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥ ३ ॥ ग्रह पालियरस घरिणी. समुद्दम्मि पसवइ । अह बालए तहिं लाए, समुहपालि त्ति नामए ॥४॥ खेमेण श्रागए चम्पं, साविए वाणिए घरं । संबड्डई तस्स घरे, दारर से सुहोइए ॥५॥ बावत्तरी कलाओ य, 'सिक्खई नीइकोविए। जोवणेण य संपन्न, सुरुवे पिय दंसणे !!६॥ . ..१. सिक्खिए । २. अप्फुरणे।
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