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[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
नरनारिं पजहे सया तवस्ती,
नय कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमन्त लिक्ख,
सुमिगं लक्खणदण्डवत्युविज । अंगवियारं सरस्स विजयं,
जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खु ॥ ७ ॥ मन्तं मूलं विहिं वेजचिन्त,
मण विरेयधूम त्तसिणां । आउरे सरणं तिगिच्छियं च,
तं परिम्नाय परिव्वए स भिक्वू ॥ ८ ॥ खत्तियगण उग्गरायपुत्ता,
माहणभोइ य विविहा य सिप्पियो । नो हेसिं वयइ सिलोगपूयं,
तं परिन्नाय परिव्वएस भिक्खू ॥ ६ ॥ गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा,
अपव्वण व संथुया हविजा । इहलोइयफलट्टा,
तेसिं
जो संधवं न करेइ स भिक्खु ॥ १० ॥ सयणासणपाणभोयणं,
विविह खाइमसाइमं परेसिं । अदप पडिसेहिए नियण्ठे,
जे तत्थ न पउस्सइ स भिक्वू ।। ११ ।। जं किं चि आहारपाराग,
विविध खाइमसाइमं परेसिं लधुं ।
१. पाणजायं ।