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श्री उत्तराध्ययन सूत्र ]
॥ अह सभिक्खू पंचदहं श्रयं ॥
मों चरिस्सामि समिच्च धां,
सहिए उज्जुकडे नियार छिने । संथवं जहिज्ज अकामकाम्रे,
अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥ १ ॥ रात्रवरयं चरेज्ज "लाढे,
विगए वेयवियाये रखिए । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी जे,
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कम्हिच न मुच्छिए स भिक्खू || २ || अक्कोसवहं वित्तु धीरे,
मुणी चरे लादें निश्चयगुत्ते । श्रव्वग्गमणे असं पहि
जे कसिं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पन्तं सयणासं भइन्ता,
सीरहं विविच समसगं । पहिले,
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जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो 'सक्करमिच्छई न पूयं,
नो वि य वन्दराम कु पसंसं ? से संजय सुब्वए तवस्सी,
सहिए आयगवेसए सभिकवू ॥ ५ ॥ जेण पुरा जहाइ जीवियं,
मोहं वा करिणं नियच्छइ ।
१. सक्किय ।