________________
३८ ]
[ श्री उत्तराध्ययन सूत्र
जहा से उडुवई चन्दे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुराणे पुराणमारिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से समाइयां, कोट्टागारे सुरक्खिए । नाणाधन्न पडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवग, जंबू नाम सुदंसण | अणाढियस्ल देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २७ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवही, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २८ ॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मन्दरे गिरी | नाणोस हिपज लिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा से सयंभुरमणे, उदठी श्रक्खओदए । नाणारयण पडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए || ३० ॥
समुह गंभीरसमा दुरासया,
अचक्किया के राइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुराणा विउलस्स ताइणो,
खवित्त कम्मं गइमुत्तमं गय। ॥ ३१ ॥
तम्हा सुयमहिट्ठिजा, उत्तमट्ठगवेसए । जेणपाणं परं चेव, सिद्धिं संगउरोजा सि ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि
॥ बहुस्सुयपुज्जं समत्तं ॥। ११ ॥
॥ अह हरिसिज्जं बारहं अझयणं ।
सोव कुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम, श्रासी भिक्वू जिइन्दियो ॥ १ ॥
१- पभवा । २. अशुत्तर० ।