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________________ [७] शास्त्र भी स्वीकार करते हैं, परन्तु उनका कथन है कि भगवान्ने एक मासका योग साधन किया था और श्रावन सुदी ७ को ३६. मुनीश्वरोंके साथ मुक्तिलाभ किया था। कल्पसूत्रमें उन्हें श्रावण शुक्ला को ८३ व्यक्तियों सहित निर्वाणपद पाते लिखा है । इस प्रकार दोनों आनायके शास्त्रोंमें भगवान् पाश्वकी जीवनीमें परस्पर भेद है। श्वेताम्बरोंके अर्वाचीन ग्रंथों, जैसे भावदेवमूरिके चरितमें जो पूर्वभव वर्णन है, वह संभवतः दिगम्बर शास्त्रोंसे लिया गया है क्योंकि उसमें कुछ विशेष अन्तर नहीं है और वह वर्णन उनके प्राचीन ग्रन्थों में नहीं मिलता है । तिसपर भावदेवसुरि नो दिगंबराम्नायके अनुसार दश गणधर बतलाते हैं, वह भी इसी आधारका सूचक है । परन्तु इसको निर्णयात्मक रूपसे स्वीकार करना जरा कठिन है। किन्तु अनुमान श्वे० कथनको दिगम्बर शास्त्रोंका ऋणी बतलाता है। यह भी ध्यान रहे कि भावदेवमूरि आदिके पार्श्वचरित दिगम्बरोंके पार्श्वचरित आदिसे उपरांतकी रचना है । अस्तु; भगवान पार्श्वनाथनीके पूर्वभव वर्णनमें निस प्रकार मरुभूति और कमठके भवसे परस्पर दो जीवोंमें भारतीय साहित्यमें दशमें भक्तक शत्रुता चली आई बतलाई ऐसी अन्य गई है, वह जीवोंके कषायभावोंकी तीव्रता कथायें और उसके कटुकफलकी द्योतक है और . भारतीय साहित्यमें ऐसे ही अन्य उल्लेख भी मिलते हैं । चित्त और सम्भूतकी कथा इसी तरह दो जीवोंका जन्मान्तरतक एक दूसरेका सहायक प्रकट करती है। सनत्कुमारकी १-ब्रह्मदत्तकथा-वाइना जर्नल ऑफ ओरियन्टल स्टडीज, भा०५व ६।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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