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________________ [५३] दोनों संप्रदायके ग्रन्थों में भगवान के पांचोंकल्याणकोंको विशाखा नक्षत्रमें घटित हुआ बतलाया गया है । जन्मतिथि भी दि शास्त्रमें श्वे के पौषकृष्ण १०के स्थानपर पौषकृष्ण एकादशी है । हां, दीक्षातिथि दोनों संप्रदायोंमें एक मानी गई है । पालक का नाम कल्पसूत्रमें 'विशाला' और दि० शास्त्रमें 'विमला' है । दीक्षा समय दि० शास्त्र भगवानको दिगंबर मुनि हुआ बतलाते हैं; परन्तु श्वे. शास्त्र उन्हें देवदूष्य वस्त्र धारण करते हुये लिखते हैं; यद्यपि उनका यह कथन निःसार है, क्योंकि पहले तो उन्हींके शास्त्रोंमें साधुकी सर्वोच्चदशा नग्न बताई है और उसका अभ्यास तीर्थंकरोंने किया, ऐसा लिखा है । तिसपर इसके अतिरिक्त बौद्ध और वैदिक मतोंके ग्रंथोंसे भी भगवान् महावीरसे पहले के जैन साधुओं का भेष नग्न ही प्रमाणित होता है। वैदिककालके जैन यति अथवा ज्येष्ठ व्रात्य नन होते थे, यह हम किंचित् ऊपर देख ही चुके हैं । अस्तु; श्वे के इस कथनपर सहसा विश्वास नहीं किया जासक्ता । अगाड़ी दि. शास्त्र भगवान् की छद्मस्थावस्था ४ मास और केवलज्ञान प्राप्तिकी तिथि चैत्रकृष्ण चतुर्दशी कहते हैं । श्वे • यह अवधि ८३ दिनकी और उक्त तिथि चैत्र कृष्ण चतुर्थी बतलाते हैं । दिगंबर शास्त्रमें गण और गणधर दश बताये गए हैं; जैसे भावदेवमूरिने भी बताये हैं, परन्तु कल्पसूत्र में वे ८ ही हैं । मुनियोंकी संख्या दिगम्बर शास्त्रोंमें भी १६० ० ० बताई गई है; परन्तु आर्यिकाओंकी संख्या श्वे से विपरीत उनमें ३६००० है । श्रावक भी एकलाख और श्राविका तीनलाख बताये गए हैं । सम्मेदशिखरसे मुक्त हुए दि. १-भगवान महावीर और म• बुद्ध पृ. ६४-६५ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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