________________
४०६ ]
भगवान पार्श्वनाथ |
उनके चरित्र के एक रश्मि प्रकाशको पाकर उनके पवित्र चरित्रको पूर्ण करते हुए आइए पाठकगण उनके चरणोंमें नतमस्तक होलें; क्योंकि:
--
" नरनारक आदिक जोनि विषै, विषयातुर होय तहां उरझे है । नहिं पावत है सुख रंच तऊ, परपंच प्रपंचनिमैं मुरझे है || जिन पारश सों हित प्रीति बिना,
चित चिंतित आश कहां सुरझै है | जिय देखत क्यों न विचारि हिये, कहुं ओसकी बूंद सों प्यास बुझे है ॥
इतिशम् - ॐ शान्तिः !
आश्विन शुका २ सं० १९८३ मंगलवासरे परिपूर्णम् । ता० ७-१२-१९२६ ।