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________________ भगवानके मुख्य शिष्य । [३१३ और राजा शुद्धोदन उन जैन श्रमणोंके भक्त थे। इस प्रकार श्री पिहिताश्रव मुनिराजके सर्व प्रमुख शिष्य बुद्धिकीर्तिके पितृकुल एवं उनके उपरान्त बौद्धधर्मके प्रवर्तकरूपमें वर्णन है । वह भ्रष्ट जैन मुनि थे और भगवान् महावीरके समकालीन थे । "मौन एकादशी व्रतकथा" में भी श्री पिहिताश्रव मुनिका कथन है । इस कथामें कौशांबीके राना हरिवाहन और उनकी 'पट्टरानी शशिप्रभाका अपने राज्यविमुख पुत्र सुकौशलके सम्बन्धमें श्री सोमप्रभु नामक मुनिराजसे जिज्ञासा करने का उल्लेख है। मुनिराजने राजा रानीका समाधान करते हुये कहा था कि 'कौशल्य देशके कूटनगरमें राजा रणसिंह और उसकी रानी त्रिलोचना थी। इनके रामत्वकालमें उसी नगर में एक कुणवी रहता था, जिसके तुङ्गभद्रा नामकी भाग्यहीना कन्या थी। तुङ्गभद्राकी शैशव अवस्थामें ही उसके मातापिता कालकवलित होगए थे और वह ज्योंत्योंकर बड़ी हुई ! आठ वर्षकी जब वह थी तब एक रोन घास काटनेके लिये वनमें जाते हुये उसे श्री पिहिताश्रव मुनिराजके दर्शन हो गये। उसने भी श्रीगुरुके मुखारविंदसे धर्म श्रवण किया और उनके परामर्शसे एकादशी व्रत ग्रहण किया ! व्रतको पूर्णतः पालकर वही कन्या मरकर तेरे यह सुकौशल नामक पुत्र हुआ है । यह चरमशरीरी है, इसी भवसे मोक्षलाभ करेगा। इसीलिये यह राज्यकानसे विमुख रहता है।' राजा अपने पुत्र का यह पूर्वभव सुनकर संसारसे विरक्त हो चला और राजभवनमें आकर उसने सुकौशलको तो १-भगवान् महावीर और म. दुद्ध पृ० ३७-३८ । २- जैनकथासंग्रह पृ. १३५ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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