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________________ ३१२] भगवान पार्श्वनाथ । बुद्धके पितृगण भी श्रमणभक्त थे। निस समय म० बुद्धका जन्म हुआ था, उस समय एक अजितनामक श्रमण ऋषिने उनको देखकर आशीर्वाद दिया था तथापि जिस समय वे कपिलवस्तुसे बाहिर आरहे थे, तब भी उनको एक श्रमणके दर्शन हुये थे। यह श्रमण बौद्ध भिक्षु तो नहीं हो सक्ते, क्योंकि उस समय बौद्धधर्मका अस्तित्व नहीं था किन्तु इसके माने यह भी नहीं है कि वे निश्चितरूपमें जैनश्रमण ही थे, क्योंकि उस समय आजीविक आदि साधु भी श्रमण नामसे उल्लेखित किये जाते थे । यद्यपि यह ठीक है कि मुख्यतः इस ' श्रमण' शब्दका प्रयोग जैनसाधुओंके लिये ही होता था, क्योंकि जैनधर्मको 'श्रमणधर्म ' ही बतलाया गया है। तथापि ऋग्वेदमें जो श्रमणोंका उल्लेख है वह निसंशय जैन-श्रमणोंसे ही लागू है क्योंकि आजीविक आदि इतरश्रमणोंकी उत्पत्ति ईसासे पूर्व ९०० वर्षसे हुई बताई जाती है, जबकि ऋग्वेद करीब चार हजार वर्ष इतना प्राचीन बतलाया जाता है। रही बात म० बुद्धके समागममें आये हुये उक्त श्रमणोंकी, सो जब हम बौद्ध ग्रन्थ 'ललितविस्तर में यह उल्लेख पाते हैं कि म० बुद्ध अपने बाल्यकालमें श्रीवत्स, स्वस्तिका, नन्द्यावर्त और वर्द्धमान यह चिन्ह अपने शीशपर धारण करते थे जिनमें से पहलेके तीन चिन्ह तो क्रमशः शीतलनाथ, मुपार्श्वनाथ और अरहनाथ नामक जैन तीर्थंकरों के चिह्न हैं और अंतिम वर्द्धमान स्वयं भगवान् महावीरका नाम है तब यह कहना ठीक ही है कि संभवतः उक्त श्रमण जैन मुनि ही थे १-बुद्धजीवन (S. B. E. XIX)पृ० ११।२-इन्डियन एन्टीक्वेरी भाग ९ पृ. २४६ । ३-कल्पसूत्र पृ० ८३ । ४-ऋग्वेद १०॥३६ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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