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________________ भगवानका धर्मोपदेश ! 1 [ २७७ प्रतिमामें उसको प्रतिपक्षकी अष्टमी और चतुर्दशीको होशियारीके साथ उपवास करने पड़ते हैं। पांचवी सचित्तसाग प्रतिमामें वह सचित जिनमें उपजने की शक्ति विद्यमान हो, ऐसी शाक भाजी और जल ग्रहण नहीं करता है । छठी रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा में वह रात्रि के समय न स्वयं भोजन व जलपान करता और न दूसरोंको कराता है। सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा में वह अपनी विवाहिता स्त्री तकसे भी संभोग करना छोड़ देता है और वह पूर्णतः मन-वचनकाय से ब्रह्मचर्य का पालन करता है । आठवीं आरम्भयाग प्रतिमा में वह अपनी आजीविका के साधनों का भी त्याग कर देता है । धन कमाने, भोजन बनाने आदिसे हाथ खींच लेता है। नौवीं परिग्रहसाग प्रतिमा में वह सांसारिक पदार्थोंसे अपनी इच्छा - वाञ्छाको बिल्कुल हटा लेता है और अपनी सब धन-सम्पत्तिको त्यागकर केवल गिनतीके थोड़ेसे वस्त्र और बरतन रखलेता है । दशवीं अनुमतिसाग प्रतिमामें वह सांसारिक कार्योंके संबन्ध में अपनी राय भी नहीं देता है और ग्यारहवी एवं अन्तिम उद्दिष्टयाग प्रतिमा में वह अपने शरीरको बनाये रखनेके लिये भोजनको भिक्षावृत्तिसे ग्रहण करता है; परन्तु वह उन वस्तुओं को ग्रहण नहीं करता है जो खास उसके लिये बनाई गई हों। वह एक चादर और लंगोटीको रखकर ऐलक पदको पा लेता है। ऐलक दशा में वह हाथों में ही लेकर भोजन ग्रहण करता है । यह दोनों महानुभाव अपने साथ एक कमण्डलु और मोरपंखकी पीछी रखते हैं। तथापि क्षुल्लक एक पिण्डपात्र भी रखते हैं । इनकी भिक्षावृत्ति भी स्वाधीनरूप होती है । यह किसीसे याचना नहीं करते हैं । जो आदरभाव से उनको
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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