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________________ २५२] भगवान पार्श्वनाथ । अवस्थामें यह कोई अनोखी बात नहीं है, यदि श्वेतांबराचार्यने बौद्ध ग्रन्थमें चातुर्याम सिद्धांतका उल्लेख देखकर उसको अपने शास्त्रमें स्थान दिया हो। अगाड़ी जो भगवान् पार्श्वनाथनीको वस्त्र धारण करते हुये बतलाया है, उससे यही प्रमाणित होता है कि यहांपर वास्तविक घटनाका उल्लेख नहीं किया जारहा है, क्योंकि यह स्वतंत्र साक्षी द्वारा प्रमाणित है कि भगवान् पार्श्वनाथ भी दिगंबर वेष में रहे थे; जैसे कि हम अगाडी दखेंगे। तिप्तपर उक्त श्वे. सूत्र में गौतमगणधरको अलग संघसहित एकाकी विचरते प्रगट किया गया है। वहां भगवान महावीरका कुछ भी उल्लेख नहीं है, किन्तु यह प्रकट है कि भगवान् महावीर संघसहित विहार करते थे और उनके प्रधान गणधर गौतमस्वामी सदा ही उनके साथ रहते थे । शे के सूत्रकृताङ्गमें (२।६) गोशालने इसी बातको लक्ष्य करके भगवान महावीरपर आक्षेप किया है । श्वेताम्बरोंके उवाप्सग दमाओं के ग्रन्थसे भी भगवान के संघमें गौतम गणधरका साथ रहना प्रमाणित है। अतएव यह किस तरह पर संभव हो मक्ता है कि गौतमस्वामी अकेले ही केशी ऋषिको श्रावस्ती में मिले हों ? इस दशामें श्वे. सूत्रके उक्त कथनको यथार्थ सत्य स्वीकार करलेना जरा कठिन है; परन्तु इतना तो स्पष्ट ही है कि उसका आधार एक ऐतिहासिक तथ्य है जो भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महावीरके धर्ममें एक सामान्य अन्तर प्रगट करता है । अस्तु; ____ 'उत्तराध्ययन सूत्र में अगाड़ी बहुतसे छोटे मोटे मतभेदोंका उल्लेख किया गया है, जिनमें मुख्य मुनिलिङ्ग विषयक है । शेषमें प्रतिक्रमण संबंधमें वहां कहीं भी कुछ उल्लेख नहीं है। इस मुनिलिङ्ग
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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